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________________ हिन्दी जैन मन्ति-काव्य और कवि ___ जिनरंगमूरि विद्वान् तो थे ही, काव्यरचनामे भी निपुण थे। उन्होंने अनेक स्तवनोका निर्माण किया, जिनमे-ये कुछका प्रकागन दिल्लीके यति रामगलजीने किया है। उनको रचनाओमे 'सौभाग्यपंचमी चौपई', 'प्रबोध बावनी', 'रंग बहत्तरी', 'चतुर्विगतिजिनस्तोत्र', 'चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तवन', 'प्रास्ताविक दोहा' और नवतत्त्वबालास्तवन' मुख्य है । उनका परिचय निम्न प्रकारसे है, सौभाग्यपंचमी चौपई ___ इसको रचना मं० १७४१ में हुई थी। उसकी सूचना मिश्रबधुविनोद', 'हिन्दो जैन साहित्यका इतिहास' और 'ऐतिहानिक जैनकाव्य संग्रह'को भूमिकामे दी गयी है। इसके अतिरिक्त उसका और कुछ परिचय आदि वहाँ अंकित नहीं है। 'जैन गुर्जरकविओ'मे भी इसकी सूचना-भर ही दी है। अब यह चौपई दिल्लीसे प्रकाशित हो चुकी है। प्रवोध-बावनी इसको 'अध्यात्म बावनी' भी कहते है। इसमे आत्माको सम्बोवन कर-करके भ्रमाकुलित संसारसे उन्मुक्त होनेकी बात कही गयी है। इसकी रचना संवत् १७३१ मगसिर सुदी २ गुरुवारको हुई थी। इसकी एक प्रति संवत् १८०० आषाढ़ सुदी २ को लिखी हुई अभय जैन ग्रन्थालय बीकानेरमे मौजूद है। दूसरी प्रति जयपुरके बधीचन्दजीके मन्दिरमे विराजमान गुटका नं० ९२ मे निबद्ध है। इस रचनाके आगे निर्माण संवत् १७३१ दिया हुआ है। इसमे ५४ पद्य है । 'प्रबोध बावनी' उत्तम काव्यका निदर्शन है। उसका प्रत्येक पद्य एक गुलदस्तेकी भांति है। एक पद्यमे ऊंकार मन्त्रकी महिमाका बखान है, १. मिश्रबन्धु विनोद, भाग २, पृ० ५१३ । २. हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास, पृ० ७१ । ३. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ० १२, प्रारम्भमें ही निबद्ध काव्योंका ऐतिहासिक सार। ४. जैन गुर्जरकविश्रो, खण्ड २, भाग ३, पृ० १२७७ । ५. शशिगुन मुनि शशि' संवत् शुक्ल पक्ष, मगसर बीज गुरुवार अवतारी है। स्वल दुरुबुद्धि को अगम भांति भौति करि, सज्जन मुबुद्धि को सुगम सुख कारी है ॥५४॥ प्रबोधवावनी, राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, भाग ४, पृ० ८८ | ६ वही, पृ०८७-८८। ७. राजस्थानके जैन शास्त्रभण्डारोंकी ग्रन्थसूची, भाग ३, पृ० १४१ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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