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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य बहुत सम्मान था। वै विद्वान थे और धार्मिक भी। उनके अनेको शिष्य थे, जिनमें भट्टारक ललितकीतिका विशेष नाम है। विश्वभूषणके अलौकिक व्यक्तित्व और असाधारण गुणोंसे केवल जनसाधारण ही नहीं, अपितु विद्वान् भी आते थे । वे हिन्दीके अच्छे कवि थे। उन्होंने पूजाओं, कथाओं और अनेकानेक पदोंको रचना की। 'जिनदत्तचरित्त','जिनमत खिचरी' और 'निर्वाण मंगल' इन्हीकी कृतियाँ है। इन्होंने एक 'ढाईद्वीप' भी रचा था, जिसकी कई जयमालाएँ हिन्दीमे है । विश्वभूषणका रचना संवत् अठारहवी शताब्दीका पूर्वार्द्ध ठहरता है। ऐसा इनकी कई कृतियोंके रचनाकालसे स्पष्ट है। निर्वाण मंगल इसका सम्बन्ध निर्वाण-भक्तिसे है। यह हिन्दी-पद्य में लिखा गया है। इसकी एक प्रति जयपुरके लणकरजीके मन्दिरमे स्थित गुटका नं० १६१मे निबद्ध है। इसकी रचना वि० सं० १७२९में हुई थी। यह एक छोटा-सा गीति-काव्य है, जिसमे निर्वाण-सम्बन्धी भावोंको व्यक्त किया गया है। अष्टाह्निका-कथा इस कथाका निर्माण वि० सं० १७३८मे हुआ। इमका उल्लेख श्री कामताप्रसादजी जैनने अपने 'हिन्दी जैन साहित्यके संक्षिप्त इतिहास' पृ० १६६ पर किया है । इसमे नन्दीश्वरकी भक्तिको प्रकट करनेवाली कथा है । आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुनके अन्तिम आठ दिनोमें अष्टाह्निका-पर्व मनाया जाता है। इन दिनों नन्दीश्वर द्वीपको पूजा-भक्ति की जाती है। एतद्सम्बन्धी भाव ही इस कथामें प्रकट हुए है। आरती __इसकी हस्तलिखित प्रति मन्दिर ठोलियान, जयपुरके गुटका नं०१३१मे निबद्ध है । यह गुटका वि० सं० १७७९ मगसिर बदी ३का लिखा हुआ है। इस कृतिमें ९ पद्य है। कतिपय पंक्तियां इस प्रकार है, "पहली भारति प्रभुजी की पूजा। देवनिरंजन और न दूजा ॥ दुसरी भारति सिवदेवी नंदन । मक्ति उधारण करमनि कंदन ॥ १. राजस्थानके जैन शास्त्र भण्डारोंकी ग्रन्थसूची, भाग २, पृ० ११२ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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