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________________ २५८ हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि देवकुमारी मात पै, सेवा कान रषाई जी। तातै गहे पट मांस लौं, रतनावृष्टि बरषाई जी॥" ६९. विश्वभूषण ( वि० सं० १७२९ ) विश्वभूषण एक प्रसिद्ध भट्टारक थे। उनका सम्बन्ध बलात्कारगणकी अटेरशाखासे था। उनकी गुरु-परम्परा इस प्रकार थी : शीलभूषण, ज्ञानभूषण और जगद्भूषण । विश्वभूपणने वि० सं० १७२२ माघ कृष्ण ५ को एक सम्यग्दर्शनयन्त्र स्थापित किया था। उन्होंने शौरीपुरमें वि० सं० १७२४ वैशाख कृष्ण १३ को एक मन्दिरका भी निर्माण करवाया था। 'ज्योति प्रकाश' नामके ग्रन्थमें इनकी और इनके कार्योंको प्रशंसा की गयी है। इनके उपदेशसे ही पं० हेमराजने शहर गहेलीमे सुगन्धदशमीकथा लिखी थी।" इस शहरको विश्वभूषणका जन्मस्थान माननेका कोई आधार नही है। __उनकी भट्टारकीय गद्दी हथिकान्तमें थी। उस समय यह जिला आगरेका प्रसिद्ध नगर था। वहां बड़े-बड़े धार्मिक श्रावक रहते थे। उनमे विश्वभूषणका १. भट्टारक सम्प्रदाय, विद्याधर जोहरापुरकर सम्पादित, शोलापुर, पृ० १३२ । २. "सं० १७२२ वर्षे माधवदि ५ सौमे श्रीमूलसंघे भ० जगद्भपण तत्पट्टे भ० श्री विश्वभूषण तदाम्नाये यदुवंशे लंवकंचुक पचोलने गोत्रे सा भावते हीरामणि।" जैनसिद्धान्तभास्कर, प्रतिमालेख संग्रह, पृ० १८, भट्टारक सम्प्रदाय, पृ० १२८ । ३. श्रीमूलसंघे वलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे कुंदकुंदाचार्यान्वये श्रीजगत्भूषण श्री भ० विश्वभूषणदेवाः स्वरीपुरमै जिनमदिर प्रतिष्ठा सं० १७१४ वैशाखवदि १३ को कारापिता।" जैनसिद्धान्तभास्कर, अंक १६, पृ० ६४, भट्टारकसम्प्रदाय, पृ० १२८ । ४. "ज्ञानभूषण जगदिभूषण विश्वभूषण गणाग्रणी त्रयी चिन्मयी स्वविनयी हिताश्रयी स्ताद् यतो भवति मे विधिजयी।" वही, पृ० १३, वही, पृ० १२८ ।। ५. सुगंधदशमीकथा, दिल्ली, सन् १६२१, पद्य ३७-३६ । ६. का० ना० प्र० पत्रिकाके १५वें त्रैवार्षिक विवरणमें, इन्हें शहर गहेलीका निवासी लिखा है। ७. "नगर बड़ो हथिकंत, अहो हथिकंत प्रसिद्ध, धर्मभाव श्रावग तां हैं।" जिनमतखिचरी, हिन्दी जैन साहित्यका संक्षिप्त इतिहास, पृ० १६६ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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