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जैन मक्त कवि : जीवन और साहित्य
राम कहे जे इह विधि खेले मोक्ष महल में जाय रे ॥ सु०॥"
पद-संग्रह ___ जैन पदावलीके अतिरिक्त और भी अनेक पदोका निर्माण जगतरामने किया था। बडौतके दि० जैन मन्दिरके शास्त्र भण्डारके एक पद-संग्रहम जगतरामके शतशः पद अंकित है। उनके पद जयपुरके बधीचन्दजीके शास्त्र भण्डारके गुटका नं० १३४ मे भी निबद्ध है । जगतरामने अपने नामके स्थानपर कही 'राम' और कही 'जगराम' भी लिखा है। उनके पद अध्यात्ममूला भक्तिके प्रतीक हैं। एक पदमे कविके 'आनन्दघन बरसन' को चाहना और 'सेवा पद परसन' की लालसा देखिए,
"मोहि लगनि लागी हो जिन जी तुम दरसन की ॥ टेक ।। सुमति चातकी की प्यारी जो पावस ऋतु सम आनंदधन बरसन की ।। बार बार तुमकों कहा कहिये तुम सब लायक हो मेटो विथा तरसन की । त्रिभुवनपति जगराम प्रभु, अब सेवक कौं यो सेवा पद परसन की ॥"
भक्त कविको प्रभुकी छवि अनुपम लगती है। उसे पूर्ण विश्वास है कि यदि ऐसे प्रभुका, 'सुमरन' किया जाये तो अवश्य ही मोक्ष प्राप्त होगा।
"अदभुत रूप अनूपम महिमा तीन लोक में छाजै। जाकी छबि देखत इन्द्रादिक चन्द्र सूर्य गण लाजै ॥ धरि अनुराग विलोकत जाकौं अशुम करम तजि माजै ।
जो जगराम बनै सुमरन तौ अनहद बाजा बाजै ॥" लघुमंगल
इसमें केवल १३ पद्य है। इसकी हस्तलिखित प्रति दि० जैन मन्दिर बड़ोतके गुटका नं० ५४ पत्र ९९-१०२ पर अंकित है। तीर्थकरकी मांके गर्भवती होनेपर इन्द्रने कुबेरको नगरकी नयी रचना करनेके लिए भेजा। उसने उसे नी योजनमें विस्तृत बनाया। उसे स्वर्ण और रलसे जड़ दिया । देवकुमारियां माताकी सेवाके लिए रख दी गयीं। छह माह तक रत्नोंकी वर्षा होती रही,
"सुरपति धनिन्द्र पठाइयो, नगर रच्यो बिसतारौ जी ।
नौ बारा जोजन तणौं, कनक रतन मई सारो जी ॥ १. मन्दिर बधीचन्दजी, जयपुर, पद-संग्रह नं० ४६२, पत्र ७८1७४ । २. बडौतके दि० जैन मन्दिरका पदसंग्रह, पृ०१०।