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________________ २५६ हिन्दी जैन मक्ति-काव्य और कवि जैन मन्दिरसे उपलब्त्र की थी। इसमें श्री जगतरामके रचे हुए २३३ पद हैं। उनपर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखते हुए सम्पादकोने कहा है, "इन्होने अष्टछाप कवियोंकी शैलीपर पदोकी रचनाएँ की, जिनका एक संग्रह प्रथम खोजमे प्रथम बार उपलब्ध हुआ है। इसमें तीर्थकरोकी स्तुतियां सुन्दर पदोंमे वर्णन की गयी है।" जगतरामके पद छोटी-छोटी रसको पिचकारियों से मालूम होते है । उनके पदोंमें कविका उद्दाम आवेग जैसे फूटा ही पड़ रहा है। एक स्थानपर कवि अपनी भूलको स्वीकार करते हुए कहता है, "हे प्रभु! हमने विषयकषायोका खूब सेवन किया और तुम्हारी सुध बिसरा दी। उन्होने मुझे विषधर नागको भाँति डंस लिया। अब मै मोहरूपी जहरकी लहरसे आक्रान्त हो उठा हूँ। अब उसके उपशमनका एकमात्र उपाय भक्तिरूपी गारुड़जड़ी है। अतः हे भगवन् ! हम आपके चरणोंको शरणमे आये है। हमें पूर्ण विश्वास है कि आपकी उदारतापूर्ण कृपा उपलब्ध होगी। आपके बिना हमारा कोई सहायक नहीं। और सब देवता स्वार्थके साथी है", "प्रभु बिन कौन हमारी सहाई। और सबै स्वारथ के साथी, तुम परमारथ माई ॥ भूल हमारी ही हमको इह, मयी महा दुखदाई। विषय कषाय सस्य संग सेयो, तुम्हरी सुध विसराई ॥ उन दसियो विष जोर भयो तब, मोह लहरि चढ़ि आई । मक्ति जड़ी ताके हरिबे कू, गुर गारुड़ बताई ॥ यातें चरन सरन आये हैं, मन परतीति उपाई। भब जगराम सहाय की येही, साहिब सेवगताई ॥" जगतरामके पदोंमे आध्यात्मिक फागुओंकी अनोखी छटा विद्यमान है। ये फागु छोटे-छोटे रूपकोमे निबद्ध है । एक फागु इस प्रकार है, "सुध बुधि गोरी संग लेय कर, सुरुचि गुलाल लगा रे तेरे। समता जल पिचकारी करुणा केसर गुण छिरकाय रे तेरे ॥ भनुभव पानि सुपारी चरचानि सरस रंग लगाय रे तेरे । १. काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिकाका पन्द्रहवाँ त्रैवार्षिक विवरण, संख्या १४ । २. महावीरजी अनिशयक्षेत्रका एक प्राचीन गुटका, साइजx६.पृ० १६० ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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