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जैन मत कवि : जीवन और साहित्य
२५५ पुण्यहर्ष और उनके शिष्य अभयकुशलने, इसकी रचना वि० सं० १७२२ फाल्गुन सुदी १० मंगलबारको आगरेमे जगतरायके लिए की थी। प्रशस्तिके "कोनी भाषा एह, जगनराय जिहि विधि भाषो" से सिद्ध है कि जगतरायने जैसे कहा, वैसे ही इसका निर्माण हुआ। ___ आगरेके नवाब हिम्मतवानके कहनेमे जगतरायने 'छन्द रत्नावली'को रचना वि० सं० १७३० कानिक मुदीमे, आगग्मे की थी। यह हिन्दी साहित्यका एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्य है । इसमे विविध प्रकारके छन्दोंका विवेचन हुआ है। इसमें सात अध्याय है । छठे अध्यायम फारमीके छन्दोका और मातमे तुकोके भेदोंका विशद वर्णन है । जगतर,यने उस समयके उपलब्ध सभी छन्द-शास्त्रोका अध्ययन करके,
और उनका मार लेकर इस ग्रन्थको रचना की थी। इस ग्रन्थको एक हस्तलिखित प्रति नया मन्दिर धर्मपुराके दिगम्बर जैन सरस्वती भण्डारमें मौजूद है, इस प्रतिमे पत्रसंख्या १००, श्लोकसंख्या २८०० और निर्माणकाल १७३७ दिया हुआ है। उसके प्रारम्भिक दो पद्योमे हिम्मतखानका यशोल्लेख है। कहींकहीं जैन पारिभाषिक शब्द भी आये है। ___ नवीन खोजोमें जगतरामके बनाये हुए कुछ पद भी प्राप्त हुए हैं। जगतरामको 'जैन पदावली' का उल्लेख काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिकाके एक खोज-विवरणमै हुआ है । इसके अतिरिक्त उनकी रची हुई विनतियां भी उपलब्ध हुई है। जैन-पदावली ___ इसकी सूचना काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिकाके पन्द्रहवें वार्षिक विवरणमें संख्या ९४ पर अंकित है । सम्पादकोंने इसकी प्रति किरावली जिला आगराके
१. पद्मनन्दिपंचविंशनिका, प्रशस्ति, भारतीय साहित्य, पृ० १८१। २. जुगतराई मो यो कह्यो, हिम्मतखान बुलाई । पिंगल प्राकृत कठिन है, भाषा ताहि बनाई ॥३॥ छंदो ग्रन्थ जिनेक है, करि इक ठौरे आनि । समुझि मबको सार ले, रतनावली बखानि ॥४॥
छन्द रत्नावली, नया मन्दिर, धर्मपुरा दिल्लीकी प्रति, नम्बर ६१। ३. उज्जल जम अंबर को दम दिस हिंमतखान ।
मुकता तजि सुर सुन्दरिन, भूषन कियो कान । हिम्मतखां मो अरि कपन, भाजत लै लै जीय । अरि रि हमे हूँ मॅग लै, बोलत तिनकी ती ॥ वही, पृ० १८३।