SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन मक्त कवि : जीवन और साहित्य २५३ ऐसा प्रतीत होता है कि जगतराम स्वयं अपने परिवारसहित आगरेमे आकर बस गये थे। वे औरंगजेबके दरबार में किसी उच्च पदपर प्रतिष्ठिन थे। उन्हें राजाकी पदवी मिली हुई थी। शायद इसी कारण लोग उन्हें जगतरामके स्थानपर जगतराय कहने लगे थे। काशीदासने उन्हे "भूप' और 'महाराज'-जैसे विशेषणोसे युक्त किया है। उनकी जाति अग्रवाल और गोत्र सिंघल था। वे स्वयं राजा थे किन्तु अहंकार नाम-मात्रको भी नहीं था। उन्होने अनेक कवियोको उदारतापूर्वक आश्रय दिया, उनमे एक काशीदास भी थे। डॉ० ज्योतिप्रसाद जैनके कथनानुसार यह सम्भव है कि वे जगतरायके पुत्र टेकचन्दके शिक्षक भी हों। श्री अगर चन्द नाहटाने लिखा है, "जगतराय एक प्रभावशाली धर्म-प्रेमी और कवि-आश्रयदाता तथा दानवीर सिद्ध होते है।" रचनाएँ जगतरामको रचनाओंके विपयमै विवाद है। पं० नाथूरामजी प्रेमीने "दिगम्बर जैन ग्रन्थकर्ता और उनके ग्रन्थ' मे जगतरायको तीन छन्दोबद्ध रचनाओका उल्लेख किया है : 'आगम विलास', 'सम्यक्त्व-कौमुदी' और 'पद्मनन्दी पंचविंशतिका'। अनेकान्त वर्ष ४, अंक ६, ७, ८ में प्रकाशित दिल्लीके नये मन्दिर और सेठके कुँचेके मन्दिरको ग्रन्थ सूचीके अनुसार जगतराय 'छन्द रत्नावली' और 'ज्ञानानन्द श्रावकाचार'के भी रचयिता थे। इनमें 'श्रावकाचार' गद्यका ग्रन्य है। दिल्लोकी ग्रन्थ सूचीक अनुसार 'आगमविलास' एक संग्रह-काव्य है। यह संग्रह वि० सं० १७८४ माघ सुदी १४ को मैनपुरीम किया गया था। उसकी प्रशस्निमे लिखा है कि द्यानतरायके सं० १७१३ में स्वर्गवास हो जानेपर उनके १. सहर आगरौ है मुख थान, परतपि दीस स्वर्ग विमान । चारो वरन रहे सुख पाइ, तहां बहु शास्त्र रच्यो सुखदाइ । पभनन्दिप चविशतिका, प्रशस्ति संग्रह, पृ० २३४ । २. अनेकान्त वर्ष १०, किरण १०, पृ०३७५ । ३. काशीदास, सम्यक्त्व-कौमुदी, प्रशस्ति और पुष्पिका, अनेकान वर्ष १०, किरण १०। ४. अग्रवाल है उमग्यानि, सिघल गोत्र वसुधा विख्यात । पुण्यहर्ष, पद्मनन्दिपंचविंशतिका, प्रशस्ति सग्रह, पृ० २३३ । ५. भारतीय साहित्य, वर्ष २, अंक २, आगरा, पृ० १७१। ६. पं० नाथूराम प्रेमी, दिगम्बर जैन ग्रन्थकर्ता और उनके ग्रन्थ, जैन-हितेषी, १६११ ई०, पृ० ४२ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy