SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५१ बैन मक कवि : जीवन और साहित्य चित्रबन्ध-दोहा ___ इसका रचनाकाल तो मालम नहीं है, किन्तु इसको प्रति जिस गुटकेमे संकलित है, वह सं० १७२६ का लिखा हुआ है, अत: यह स्पष्ट है कि इसकी रचना उमसे पूर्व ही हुई होगी। यह एक नयी रचना है। इसको प्रति जयपुरके लूणकरजीके मन्दिरमे स्थित गुटका नं० १७६ में निवद्ध है। जैनीमें चित्रवन्ध काव्यको परम्परा बहुत पुरानी है। पद्मनन्दि पंचविंशतिका भाषा इसका निर्माण सं० १७२४ मे हुआ था। यह भी एक नयी खोज है। इसकी प्रति जयपुरके बड़े मन्दिरके वेष्टन नं. ९७१ मे बंधी रखी है। यह प्रति स० १७२४ की ही लिखी हुई है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह जोधराजके हाथकी ही लिखी हुई है। इसमे १५७ पन्ने है । अन्तिम ३९ पत्र नहीं है। यह भी पद्मनन्दि पंचविंशतिकाका भाषानुवाद है। जोधराजके पद ___ जोधराजके रचे हुए पद नयी खोजोम उपलब्ध हुए है। जयपुरके बधीचन्दजीके मन्दिरमे स्थित गुटका नं० ८० और १२८ मे इनके कतिपय पद संकलित है । बड़ोतके दि० जैन मन्दिरके गुटका नं० ५५, बेष्टन नं० १७२ मे जोधराजकी एक विनती पृ० ९९-१०५ पर अंकित है। इसमे २४ पद्य है। विनतीमे पर्याप्त सरसता है, "जै जै येक अनेक सरूप, जै जै धर्म प्रकासक रूप । वरन रहित रस रहित सुभाव, जै जै सुध भातम दरसाव ॥१२॥ जै जै देव जगत गुरु राज, जै जै देव सकल संवारन काज । जै जै केवल ग्यान सरूप, मोह तिमिर पंडन रवी रूप ॥१४॥ जब लग जीव भ्रमो संसार, पाय सरूप लयो अधिकार । जब लग मन वच काय करेय, जिनवर भगति हीय न धरेय ॥१५॥" ६८. जगतराम (वि० सं० १०२२-१७३०) इनके पितामहका नाम भाईदास था, जो श्रावकोमे उत्तम और धार्मिक कार्यो१ राजस्थानके जैन शास्त्र भण्डारोंकी ग्रन्थ सूची, जयपुर, भा॰ २, पृ० १५६ । २. वी, भाग ३, पृष्ठ क्रमशः १३७, १५३ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy