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________________ २५० हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि दिल्ली में मौजूद है। इसमे कुल २३ पत्र है। इसपर रचना संवत् १७२४ दिया हुआ है । यह प्रति नवीन है और सं० १९८४ की लिखी हुई है। यह एक मौलिक कृति है। इसमे विविध सुभापित और स्तुतियोंके द्वारा जैन धर्मका निरूपण किया गया है। एक स्तुति देखिए, "शीतलनाथ मजो परमेश्वर अमृत मूरति जोति वरी । मोग संजोग सुत्याग सबै सुषदायक संजम लाभ करी ॥ क्रोध नहीं जहां लोम नहीं कछू मान नहीं नहिं है कुटिलाई । हरि ध्यान सम्हारि सजो सुभ केवल जोध कहै वह बात खरी ॥" प्रीतंकर चरित्र इसको रचना संवत् १७२१ मे हुई थी। उसकी एक प्रति जयपुरके बड़े मन्दिरके गुटका नं० ११२ मे निबद्ध है। यह गुटका सं० १७२४ फाल्गुन सुदी १० का लिखा हुआ है। इसका उल्लेख ज्ञानचन्दजीको सूचीमें भी किया गया है। इसमें महाराजा प्रीतंकरका चरित्र है, जो भगवान् जिनेन्द्रके परम-भक्त थे। कथा-कोश ___ इसकी रचना सं० १७२२ में की गयी थी। इसका उल्लेख पण्डित नाथूरामजी प्रेमी और श्री कामताप्रसादजी जैनने किया है। उनका आधार श्री ज्ञानचन्द. जीवाली सूची है। ज्ञान समुद्र __इसका निर्माण सं० १७२२ चैत्र सुदी १० को हुआ था। इसको एक प्रति इसो संवत्की लिखी हुई जयपुरके बड़े मन्दिरमे वेष्टन नं० ५३३ मे निबद्ध है। इस प्रतिको स्वयं जोधराज गोधीकाने सांगानेर में लिखा था। इसमें ३३ पृष्ठ है। इसकी एक प्रतिका उल्लेख बाबू ज्ञानचन्दजीवाली सूचीमें भी हुआ है। प्रवचन सार ___ इसकी रचना संवत् १७२६ मे हुई थी। इसकी एक प्रति जयपुरके बड़े मन्दिरके वेष्टन नं० ११९४ में बंधी रखी है। इसपर रचनाकाल सं० १७२६ पड़ा हुआ है। यह प्रति सं० १७२९ कात्तिक बदी १ भृगुवारकी लिखी हुई है। इसमें ६४ पन्ने है । यह आचार्य कुन्दकुन्दके प्रवचनसारका भाषानुवाद है । " १. हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास, बम्बई, १९१७, पृ० ६८ । २. हिन्दी जैन साहित्यका संक्षिप्त इतिहासे, पृ० १५६ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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