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हुए कविने लिखा है, 'वह भूपोमें सिरमौर है, पोषण करता है । उसके समान और कोई हुआ है । शान्ति और सुव्यवस्था के होनेके निर्माण कर सके ।
हिन्दी जैन मक्ति-काव्य और कवि
और प्रजाका सुष्ठु प्रकारसे पालनराजा नहीं है । सब जगह चैन छाया कारण हो जोधराज अनेक ग्रन्थोंका
बाबू ज्ञानचन्दजीने अपनी 'दिगम्बर जैन भाषा ग्रन्थनाम सूची के पृष्ठ ४-५ पर जोवराजकी सात रचनाओंका उल्लेख किया है। उनमें केवल 'भावदीपिका' हिन्दी गद्यका ग्रन्थ है, अवशिष्ट सब कृतियां पद्यमे लिखी गयी हैं । इनके अतिरिक्त कुछ पद भी मिले है । उनमे भगवान् जिनेन्द्रको भक्ति प्रधान है | भाव उत्तम है और भाषा प्रौढ़। 'चित्रबन्ध दोहा' और 'पद्मनन्दिपंचविंशतिका - भाषा' भी उन्हीं की कृतियाँ है । ये अभीकी खोजोंमे उपलब्ध हुई हैं । उनको रचनाओंका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकारसे है :
सम्यक्त्वकौमुदी
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इसकी रचना वि० सं० १७२४ फाल्गुन वदी १३ शुक्रवारको पूर्ण हुई थी। संवत् १७८४ की लिखी हुई एक प्रति नया मन्दिर दिल्लीके शास्त्र भण्डारमे मौजूद है। इसमें ६८ पृष्ठ है । दूसरी प्रति संवत् १७९३ की लिखी हुई आमेरके शास्त्रभण्डारमें रखी हुई है। इसमें कुल ६१ पृष्ठ है । तीसरी प्रति जयपुरके ही बघीचन्दजीके मन्दिरके शास्त्र भण्डार के वेष्टन नं० ५८२ में निबद्ध है । यह प्रति सं० १८३० कार्तिक वदी १३ की लिखी हुई है। इसमें कुल ५६ पन्ने है । रचनाकाल सं० १७२४ फाल्गुन वदी १३ दिया हुआ है । यह प्रतिलिपि हरीसिंह टोंग्याने चन्द्रावतोंके रामपुरामे की थी ।
कविने यह रचना अपने मामा
कल्याणके लिए की थी । कल्याण लुहाडी
१. परम प्रजा पाल सदा, सब भूपनि सिरमौर | रामसिंह राजा प्रगट, ता सम नाहीं और ॥ ताकै राज सुचैन स्यों, कियो ग्रन्थ इह जोध | वही ।
२. संवत् सत्रह सौ चोईम, फागुन बदि तेरस सुभदीस ।
सुकरवार संपूरन भई, यह कथा समकित गुन ठई ॥ सम्यक्त्वकौमुदी, हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास, बम्बई, १६१७, पृ० ६७ ।
३. नया मन्दिर, दिल्लीके शास्त्रभण्डारकी अ ५२ ( ग ) प्रति ।