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________________ जैन मक्क कवि : जीवन और साहित्य रामचन्द्रने सतमको भक्तिमें भी अनेक पदोंका निर्माण किया । वे सभी सरस है । उनमें प्रसाद गुग है। उपर्युक्त ‘पद संग्रह में उनका भी संकलन है । ६७. जोधराज गोधीका ( वि० सं० १७२१) ___ गोधीका ढूंढाड देशके मुख्य नगर सांगानेरके निवासी थे। उन्होंने लिखा है कि "मैंने सहस्रो नगरीको देखा है, किन्तु उसके समान और कोई नहीं है । ऐसा प्रतीत होता है कि सागानेर वास्तवमे एक प्रसिद्ध स्थान था, वहाँपर ही अनेकों जैन-कवि उत्पन्न हुए थे। वह एक साहित्यिक केन्द्र था। जोधराजके पिताका नाम अमरराज अथवा अमरसिंह था। वे जातिसे बनिया थे। जैन धर्ममें उनकी अटूट श्रद्धा थी। पिताका प्रभाव पुत्रपर भी पड़ा और जोधराज भगवान् जिनेन्द्रके भक्त बने । उनको सव साहित्यिक रचनाएं जिनेन्द्रको भक्तिसे ही सम्बन्धित हैं । जोधराजकी शिक्षा एक प्रसिद्ध ब्राह्मण विद्वानके द्वारा सम्पन्न हुई । उनका नाम हरिनाम मिश्र था। मिश्रजी अनेकों विद्याओमे पारंगत थे। जोधराजने उन्हीसे छन्द, व्याकरण और ज्योतिष आदि ग्रन्थोंका पारायण किया। संस्कृतमें व्युत्पन्न हो जानेपर उन्होंने हिन्दी काव्योका निर्माण किया। जोधराजके कथनसे ऐसा प्रतीत होता है कि मिश्रजोने उनको जैन-शास्त्र भी मूल भाषामें पढ़ाया था। उस समय सांगानेरमे राजा अमरसिंहका राज्य था। उसकी प्रशंसा करते १. सांगानेर सुथान में देश ढुंढाहडि सार । तासम नहि को और पुर, देखे सहर हजार ॥ अमरपूत जिनवर भगत, जोधराज कविनाम । वासी सांगानेर को, करी कथा सुखधाम ।। सम्यक्स्वकौमुदी, भामेर भण्डारको प्रति, अन्तिम प्रशस्ति । २. मिश्र एक हरिनाम सुनी, पढयो छन्द व्याकरण प्रमानि । ज्योतिष ग्रन्थ पढयौ बह भाय, मिश्र जोध कहै सुखदाय ॥ तिनहिं पढायो जोध को, मूल ग्रन्थ परवांन । तापर भाषा गुन कीयो, जोधराज सुखथांन । पंडित चतुर सुजान है, इह जोष हरनाम है। ताकी संगति जोष को, भयो सासतर लाभ ।। बही, अन्तिम प्रशस्ति।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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