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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
रचनाएँ
उन्होंने वैद्यकपर 'रामविनोद' और 'वैद्यविनोद' तथा ज्योतिषपर 'सामुद्रिक भाषा' का निर्माण किया था । 'रामविनोद' की रचना वि० सं० १७२० मग. सिर सुदी १३ बुधवारको सक्कीनगरमे हुई थी । यह ग्रन्थ लखनऊसे छप चुका है । 'वैद्यविनोद' का निर्माण वि० सं० १७२६ वैशाख शुक्ला १५ को मारीटमे हुआ था । यह सारंगधरका भाषानुवाद है । इस ग्रन्थके अन्तमे 'कविकुल वर्णन चौपाई' दी हुई है । किन्तु उससे पारिवारिक जीवनका कुछ भी पता नही चलता, उसका सम्बन्ध पूर्व गुरुओंकी प्रशस्तिसे है । 'सामुद्रिक - भाषा' की रचना वि० सं० १७२२ माघ कृष्ण पक्ष ६ को मेहरामे हुई थी । मेहरा पंजाब में वितस्था नदोके किनारे बसा हुआ सुन्दर स्थान था । उसमे चारो वर्ण सुखपूर्वक रहते थे । वहाँ उस औरंगजेबका राज्य था, जिसकी बड़े-बड़े बादशाह सेवा किया करते थे। इसकी प्रति जिनहर्षसूरिभण्डारमें मौजूद है, जिसका उल्लेख श्री अगरचन्दजी नाहटाने किया है ।
रामचन्द्रने काव्यसम्बन्धी चार ग्रन्थोंकी रचना की थी, जिनमें तीन स्तवन और एक चरित्रसम्बन्धी चौपई है । कतिपय पद भी प्राप्त होते हैं । 'सम्मेदशिखर स्तवन' सं० १७५० मे बना था । इसमे जैनोके प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र सम्मेद शिखरकी स्तुति की गयी है । सम्मेदशिखर से जैनोंके २० तीर्थंकरोका निर्वाण हुआ है । उसकी पवित्रताको सभीने मुक्त कण्ठसे स्वीकार किया है।
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'बीकानेर आदिनाथ स्तवन' की रचना वि० सं० १७३० जेठ सुदी १३ को हुई थी। इसमें बीकानेरस्थ आदिनाथ प्रभुकी मूर्तिको लक्ष्य बनाकर हृदयके कतिपय उद्गारोंका स्पष्टीकरण हुआ है । आदिनाथ, जैनोंके प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेवको कहते है |
'दशपचक्खाण' का निर्माण वि० सं० १७२१ पौष सुदी १० को हुआ था ।
१. राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, भाग २, पृ० ५१, ५२ ।
२. बनवारी बहु बाग प्रधान, बहे वितस्था नदी सुधान ।
च्यार वर्ण तहाँ चतुर सुजान, नगर मेहरा श्री युग प्रधान ॥
बड़े बड़े पातिसाह नरिदा, जाकी सेव करें जन कन्दा |
पातिसाह श्री ओरंग गाजी, गये गनीम दसौं दिस भास जी ॥८९॥ सामुद्रिकभाषा, प्रशस्ति, देखिए वही, पृ० १२४ ।
३. वही, पृ० १२५ ।