SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन मक्त कवि : जीवन और साहित्य १३९ करुणा रस सागर नागर लोक सबै मिलि जस्म पुणंदा है, तोरि षिजमति कर इकचित्त सुसेवक तो धरणिंदा है। तै जलती आगि निकाल्या नाग किया वम्माग सुरंदा है, तो चरणां आय रह्या लपटां इकला अति केलि करंदा है ॥२॥" श्रेणिक चरित्र ____ महाराजा श्रेणिक भगवान् महावीरके परम भक्त थे। जैनोंके अनेकों अन्य श्रेणिकके प्रश्नसे आरम्भ हुए है। उन्हींका चरित्र इस काव्यमें अंकित है। इसको सूचना 'हिन्दी जैन साहित्यके इतिहास में अंकित है। इसको रचना सं० १७२४ में हुई थी। ऋषिदत्ता चौपई ___ यह चौपई बाबू कामताप्रसादजी जैनके संग्रहमें मौजूद है।' इसमें कुल ३२ पद्य है । इसका आदि और अन्त देखिए, "अष्टापद श्री आदि जिनंद, चंपा वासुपूज्य जिनचंद । पावा मुगति गया महावीर, अवर नेमि गिरनार सधीर ॥१॥" अन्त "उत्तम नमतां लहीये पार, गुण गृहतां कहीए निस्तार । जाइनें दूर कर्मभी कोड़, कहै जिनहर्ष नमूं कर जोर ॥३२॥" मंगल गीत इसको एक प्रति जयपुरके लूणकरजीके मन्दिरमें विराजमान गुटका नं० ८१ में संकलित है। यह गुटका सं० १८०० का लिखा हुआ है। ६५. अचलकीर्ति ( वि० सं० १०१५) अचलकोत्तिके पारिवारिक जीवन और गुरु-परम्परा आदिके विषयमे कुछ भी विदित नहीं है । उनको 'बठारहनाते' नामक पुस्तकसे केवल इतना ही मालूम हो सका है कि वे फिरोजाबादके रहनेवाले थे। वे भट्टारक थे और मट्टारकीय १. हिन्दी जैन साहित्यका संक्षिप्त इतिहास, पृ० १६० । २. सहर फिरोजाबाद मे हौ, नाता की चौढाल । बार बार सबसौं कहो हो, सोषो धर्म विचार ।।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy