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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि लिखा था। दूसरी प्रति अभय जैनग्रन्थालयमे है। दोनोंमें हो १२ सवैया है । पद्योंमें लोच है और आकर्षण । इसके दो पद्योंको देखिए,
"धन की घनघोर घटा उनहीं, विजुरी चमकंति झलाहलि-सी। विचि गाज अगाज अवाज करत सु, लागत मो विषवेलि जिसी ॥ पपीया पीट पीट रटत रयण जु, दादुर मोर वदै ऊलिसी। ऐसे श्रावण में यदु नेमि मिले, सुख होत कहै जसराज रिसी ॥१॥"
अन्त
"प्रगटे नम बादर आदर होत, धना धन आगम आली भयो है। काम की वेदन मोहि सता, भाषाढ़ में नेमि वियोग दयो है। राजुल संयम ले के मुगति, गई निज कन्त मनाय लयो है।
जोरि के हाथ कहै जसराज, नेमीसर साहिब सिद्ध जया है ॥१२॥" सिद्धचक्र स्तवन ___ इसको एक हस्तलिखित प्रति जयपुरके बधीचन्दजीके मन्दिरमें विराजमान गुटका नं० ११६, वेष्टन नं० ११५५ मे निबद्ध है। कृति सिद्धचक्रकी भक्तिसे सम्बन्धित है । कतिपय पद्य देखिए,
"सूरवहराय तम तिमर देव, देवासुर खेयर विहिय सेव । सेवाप्रगय मय राय पाय, पायमिय पणामहकय पसाय ॥२॥ सायर सम समया मय निवास, वासव गुण गोयर गुण निकास ।
कासुजल संजल सील लोल, लीलाय विहिय मोहावहील ॥३॥" पार्श्वनाथ नीसाणी ___ यह स्तुति महावीरजी अतिशय क्षेत्रके शास्त्रभण्डारमे, एक प्राचीन गुटकेमे पृ० १३४ पर लिखी हुई है। इसमें २६ पद्य है। पद्योमे सरसता और गतिशीलता है। प्रारम्भके दो पद्य इस प्रकार है, "सुष संपति दायक सुरनरनायक परतष्प पाप निकंदा है। जाकी छवि क्रांति अनोपम उपम दीपत जाणि जिणंदा है॥ मुष जोति झिगामग झिगमग पूनिम पूरण चंदा है। सब रूप सरूप बाणे भूप सो तूं ही त्रिभुवन नंदा है ।।३॥
१. वही, पृ० १९७६ । २. राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, भाग ४, पृ० १६२ ।