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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
"जिनवर चउबीसे सुखदाई
भाव भगति धरि निज मनि थिरकरि, कीरति मन सुध गाई ॥ १ ॥ जि० ॥ जाके नाम कलपवष समवर, प्रणमति नव निधि पाई । चौबीसे पद चतुर गाईभो, राग बंध चतुराई ॥ २ ॥ जि० ॥
श्री सोमगणि सुपसाउ पाइकै, निरमल मति उर आई, शान्ति हरष जिन हरष नाम तैं, होवत प्रभुवर दाई ॥ ३ ॥ जि० ॥" नेमि-राजीमती बारहमास सवैया
इसके सभी पदोमे 'जिनहर्ष' के स्थानपर 'जसराज' का प्रयोग किया गया है । इसमे भगवान् नेमिनाथ और राजीमतीका प्रसिद्ध कथानक है ।
यह एक छोटा-सा विरह काव्य है । इसमे लौकिक रामके सहारे अलौकिक रामका विवेचन हुआ है । इसे हम रामानुगा भक्तिका ही दृष्टान्त कह सकते हैं । इसमे कुल १३ पद्य है । इसकी एक प्रति अभय जैन ग्रन्थालय बीकानेरमे मौजूद है। दूसरी प्रति वह है जिसका उल्लेख देसाईजीने किया है । उसे किन्हीं पण्डित विनयचन्दने सं० १७६३ आषाढ़ सुदी १ को जैसलमेर में लिखा था । इसका आदि और अन्त देखिए,
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" सावन मास घना घन बास, श्रावास में केलि करे नर नारी । दादुर मोर पपीहा रटे, कहो कैसे कटे निशि घोर अंधारी ॥ बीज झिलामळ होई रही, कैसे जात सही समसेर समारी । भाइ मिल्यौ जसराज कहे, नेम राजुल कुं रति लागें दुखारी ॥ ३ ॥ "
अन्त
"राजुल राजकुमारी विचारि के संयम नाथ के हाथ गह्यो है ।
पंच समिति तीन गुपति धरो निज, चित्त में कर्म समूह दो है ॥ राग द्वेष मोह माया नहैं, उज्ज्वल केवल ज्ञान लह्यो है । दम्पति जाइ बसें शिव गेह में, नेह खरो जसराज कह्यो है ॥१३॥
१. वही पृ० १६१ ।
२. जैन गुर्जर कविप्रो, खण्ड २, भाग ३, पृ० ११८० ।
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- बारहमासा
यह एक दूसरा बारहमासा है, जिसका विषय भी वही है। इसकी एक प्रति जिनदत्त सरस्वती भण्डार बम्बई में मौजूद है। इसको किन्ही मुनि उदयसूरिने