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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
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स्वरूप भेंट दिया गया था । इसमें काल-द्रव्यको छोड़कर अवशिष्ट पांच- जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाशका निश्चय नयसे वर्णन हुआ है। जहांनक हिन्दी कविताका सम्बन्ध है, वह मध्यम कोटिकी है। श्री नाथूगमजो प्रेमीने लिखा है कि " कविता बनारसी भगवतीदास आदिके समान तो नहीं है, पर बुरी भी नहीं है।" उन्होंने अपने इस कथन के समर्थनमे दो पद्य प्रस्तुत किये है, जो निम्न प्रकार है,
"सुख दुख दीसै भोगना, सुख दुख रूप न जीव |
सुख दुख जाननहार है, ज्ञान सुधारस पीव ॥ ३२१ ॥
संसारी संसार में, करनी करै असार ।
सार रूप जानै नहीं, मिध्यापन की टार ॥ ३२४ ॥ "
इससे इतना तो स्पष्ट ही है कि कविता सादगी है, सरलता है और प्रवाह है।
द्रव्य संग्रह भाषा
यह प्राकृत भाषाके 'द्रव्य संग्रह' का हिन्दी पद्यानुवाद है। मूल ग्रन्थका निर्माण श्री नेमिचन्द्राचार्यने किया था, जो जैनोके प्रसिद्ध ग्रन्थ जीवकाण्ड और कर्मकाण्डके रचयिता है । 'द्रव्य संग्रह मे छह द्रव्योका वर्णन है । यह अनुवाद अप्रकाशित है । इसकी हस्तलिखित प्रति जयपुरके बड़े मन्दिरके गुटका नं० ३२ में निबद्ध है । इस गुटकेका लेखनकाल सं० १७१८ माघ वदी ९ है । इससे स्पष्ट है कि यह कृति इसके पूर्व ही रची गयी होगी ।
समवशरण स्तोत्र
इसकी रचना वि० सं० १७०१, सावन सुदी ७, बुधवार के दिन हुई थी। संघवी जगजीवनने 'संस्कृतका आदिपुराण' पं० हीरानन्दको पढ़नेके लिए दिया था, उसकी सहायतासे उन्होने हिन्दोके 'समवशरण स्तोत्र' की रचना की । इस भाँति यह स्तोत्र 'निकलंक' और 'पुराण- सम्मत' है । 3
१. हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास, पृ० ६० ।
२. एक अधिक सत्रह सौ समे सावन सुदि सातमि बुध रमे ।
ता दिन सब संपूरन भया,
समवसरन कहबत गरिनया ||
पं० हीरानन्द, समवशरण स्तोत्र, २९२वॉ पद्य, लूणकरणजी पाण्ड्या मन्दिर, जयपुरकी हस्तलिखित प्रति, गुटका नं० १४४, पृ० ३११ ।
३. इतनी सुनि जगजीवन जबै, आदिपुरान मंगाया तबै ।
इस देखि तुम कहो निसंक, हम जाने ह्वे है निकलंक ॥ २९०॥