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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि
१७६१, १७७१, १७७३ और १८३७ को लिखी हुई है। एक वह प्रति है जिसका संक्षिप्त परिचय काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिकाके पन्द्रहवें त्रैवार्षिक विवरणमे संख्या १३१ पर अंकित है। यह प्रति गोकुल, जिला मथुराके पण्डित मयाशंकर अधिकारीके पास है। इसका लिपिकाल सं० १७५७ दिया हुआ है। इसमे राजा रतनसेन और पद्मावतीकी कथा है। कुछ घटनाक्रमके अतिरिक्त यह समूची कथा जायसीके पद्मावतसे मिलती-जुलती है। इसको भी 'काल्पनिक' और 'ऐतिहासिक' ऐसे दो भागोंमे बांटा जा सकता है । 'काल्पनिक' कथानकमे हीरामन तोतेका प्रयोग नहीं हुआ है। रतनसेनने अन्य उपायोंसे पद्मिनीके सौन्दर्यको सुना है। रतनसेनकी रानीका नाम भी नागमती न होकर प्रभावती है। उसे रूपमें रम्भाके समान कहा गया है। एक बार राजाने अच्छा भोजन न बननेकी शिकायत की, जिसपर प्रभावतीने क्रोधित होकर पद्मिनी नारीके साथ विवाह करनेकी बात कही, जो स्वादिष्ट भोजन बनानेमें निपुण हुआ करती है। राजाने भी ऐसी नारोको प्राप्त कर प्रभावतीके गुमानको नष्ट करनेकी प्रतिज्ञा की। वह औघड़नाथ सिद्धको कृपासे भयानक समुद्रोको पार करता हुआ सिंहलमें पहुंचा, और वहाँके राजाको अपनी वीरतासे प्रसन्न कर उसकी पुत्री पद्मावतीके साथ विवाह कर, छह माह बाद चित्तौडगढ़में वापस आ गया। इस कथानकमे कल्पनाएँ तो है, किन्तु उनमें वैसी असम्भवनीयता नहीं आ पायी है जैसी कि 'पद्मावत' मे पायी जाती है। यह कथानक मानव जीवनके अधिक निकट है।
ऐतिहासिक भाग वैसा ही है, किन्तु यहां राघव और चेतन नामके दो पण्डित हैं, जो रतनसेनसे अप्रसन्न होकर अलाउद्दीनके दरबारमे रहने लगे। उन्होंने स्वयं पद्मावतीके रूपका वर्णन बादशाहसे नहीं किया, अपितु एक तोतेके मुंहसे करवाया
१. पटराणी पद्मावती रूप रम्भ समान ।
देखत सुरी न किन्नरी असी नारि न आन ॥
का० ना० प्र०प०, पन्द्रहवाँ त्रैवार्षिक विवरण, संख्या १३१ । २. तब लड़की बोलो तिसे जी, राणी मनकरि रास।
नारी आणी कान भीजी, दयो मत झूठो दोस ।। हने केलवी जाणा नही जी, किसु करीज बाद ।
पद्माकी का परणरे नवीजी, जिम भोजन है स्वाद ।। ३. राणे तो हूँ रतनसी परणु पदमनि नारि
भो सातो बोले मुन्हें जे मैं राषो भाज परणुं तुरणी पदमिनी गालुं तुझ गुमान ।