SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य लालचन्द विनोदी और लालचन्द लाभवर्द्धन तो बहुत ही प्रसिद्ध है। इनमें से प्रथमका उल्लेख हो चुका है, दूसरे खरतरगच्छीय जैन यति थे, जिनकी गणना प्रतिष्ठ विद्वानोमे की जाती है । उनकी आठ प्रसिद्ध रचनाओका विवेचन श्री अगरचन्दजी नाहटाने किया है। इनका रचनाकाल सं० १७२३ से १७७० तक माना जाता है। लालचन्द लब्धोदय मेवाड़के राजा जगतसिंहके आश्रयमे रहते थे । जगनसिंहका राज्यकाल सं० १६८५ से सं० १७०९ तक स्वीकार किया गया है । लालचन्दकी प्रसिद्ध रचना 'पद्मिनी चरित' का निर्माण सं० १७०७ मे हुआ था । यह भी खरतरगच्छीय थे। इनकी गुरु-परम्परा जिनमाणिक्यसूरि, विनयममुद्र, हर्पविलास, ज्ञानसमुद्र और ज्ञानराजमणिके रूपमें स्वीकार की गयी है। इन्होंने अपने गुरु ज्ञानराजमणिका अत्यधिक श्रद्धापूर्वक स्मरण किया है । उनको 'साधुशिरोमणि' और 'सकल विद्या भूषित' कहा है ।" लब्धोदयकी विद्वत्ता विषयमें तो कुछ नहीं कहा जा सकता, किन्तु इतना स्पष्ट है कि प्रबन्धकाव्योंकी रचनामें वे निपुण थे । यद्यपि 'मलय सुन्दरी चौपई' के अन्तमे इनको 'व्याकरणतर्क साहित्य, छन्दकोविद, अलंकार रस जाण जी' कहा गया है, किन्तु एतत् सम्बन्धी उनको कोई रचना उपलब्ध नही होती । 'पद्मिनी चरित्र', 'मलयसुन्दरी चौपई' और 'गुणावली चौपर्ड' नामसे इनकी तीन रचनाएँ उपलब्ध हुई है। इनमें से 'पद्मिनी चरित्र' प्रबन्ध-काव्य, 'मलयसुन्दरी चौपई' खण्ड-काव्य और 'गुणावली चौपई' एक छोटा-सा कथा-काव्य कहा जा सकता है । तीनों सरसता है । अलंकार और छन्दोंका भी समुचित प्रयोग हुआ है। २२५ पद्मिनी चरित्र ५ खरतरगच्छके सूरीश्वर जिनरंगके प्रसिद्ध श्रावक हंसराजकी प्रेरणासे इस रचनाका निर्माण वि० सं० १७०७ चैत्र शुक्ला १५ शनिवार के दिन हुआ था । इसकी चार प्रतियोंका उल्लेख 'जैन गुर्जर कविओ' में हुआ है । वे क्रमश सं० १. राजस्थानमें हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, द्वितीय भाग, पृ० १५६ २. का० ना० प्र० पत्रिकाका पन्द्रहवाँ त्रैवार्षिक विवरण, संख्या १३१ । ३. जैन गुर्जर कविओो भाग २, पृष्ठ १३४ । ४. साधु मीरोमणी सकल विद्यागुण सोभतारे, वाचक श्रीज्ञानराज, ताम प्रसादई सीलनणा गुण मथुण्यारे श्री लब्धोदय हितकाज । वही, पृष्ठ १३७, १५वॉ पद्य । ५. वही, पृ० १३४ । ६. वही, पृ० १३८ । २९
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy