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हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि
की लिखी हुई दि० जैन मन्दिर बडौतके गुटका नं० ५४, वेष्टन नं० २७२ में संकलित है | इसमें केवल ११ पद्य है । इसमे जीवको संसारसे विरक्त करनेकी प्रेरणा दी गयी है । कतिपय पद्य देखिए,
" दिन दिन आव घटे है रे लाल,
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ज्यों अंजली कौ नीर मन माहिं ला रे । कयो जाय ठोकर लै रे लाल, थिरता नहीं संसार मन माहिं का रे ॥ सी सुगुरु की मानि लै रे लाक ॥ ६ ॥ बाल पण पोयो ष्याल मै रे लाल, ज्वांण पण उनमान मन माहिं का रे ।
बृभ पण सकति घटी रे लाल,
करि करि नाना रंगि मन माहिं ला रे ॥ सीष० ॥६॥
समकित स्यों परयौ करो रे लाल,
मिथ्या संगि निवारि मन माहिं का रे ।
ज्यों
सुष पावै अति घणां रे लाल,
मनोहर है विचार मन माहिं का रे ॥ सीष ॥ ११ ॥”
गुण ठाणा गीत
यह गीत दीवान बधीचन्दजीके मन्दिर, जयपुरके गुटका नं० २७ मे पृ० ३१४ पर निबद्ध है । इसमें १७ पद्य हैं, जो परम चिदानन्दकी भक्तिमें लिखे गये है । उनमें से एक इस प्रकार है,
"परम चिदानन्द सम्पद पद धरा,
अनन्त गुणाकर शंकर शिवकरा ।
शिवकराए श्री सिद्ध सुन्दर गाउं गुण गण ठाणए, बिम मोक्ष सौख्ये सुख साधु केवल णाण प्रमाण ए । शुभचन्द्रसूरि पद कमल युगलई, मधुपत्रत मनोहर धरए, इत श्री वर्धमान ब्रह्म एह बाणि भयीयण सुखकर ए ॥ "
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लालचन्द लब्धोदय ( वि० सं०
इन्होंने अपनी रचनाओंमें प्रायः 'लब्धोदय' का प्रयोग किया है। यह इनका उपनाम प्रतीत होता है । वैसे लालचन्द नामके कई जैन कवि हो गये हैं, जिनमें से
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