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________________ २२० हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि ये सांगानेरके रहनेवाले थे किन्तु 'कर्मके उदय तै' धामपुरमे आकर रहने लगे थे। धामपुर एक रमणीक स्थान था, जिसके चारों ओर बाग़-बगीचोकी प्राकृतिक छटा बिखरी हुई थी। उनमें कोयल पंचमरागसे कूकती ही रहती थी। कूप, बावली और पोखरी निर्मल जलसे भरी हुई थी। कमलिनी विकसित थी, जिनपर भ्रमर गुंजार करते थे। वहाँ मनोहरदास सेठ, 'आसू' के आश्रयमे रहते थे। वह नगर-सेठ कहलाता था। लक्ष्मीकी उसपर अपार कृपा थी, वैसा ही उसे दान देनेका उदार हृदय भी मिला था। एक बार बनारसका प्रसिद्ध सेठ प्रतिसागर पापक उदयसे दरिद्र हो गया। वह अयोध्या आया किन्तु अयोध्याके सेठने उसे 'आसू के पास भेज दिया। उसने विपुल दान देकर प्रतिसागरको अपनी बराबरीका करके पुनः बनारस वापस भेज दिया। ऐसे दानी और उदार सेठको पाकर मनोहरदास भी कृतकृत्य थे। किन्तु उनकी रचनाओंपर सेठजीकी इच्छाकी कोई छाप नही है, वे सब स्वान्तःसुखाय ही लिखी गयी है। मनोहरदासमे विनम्रताका भात्र मुख्य था, उन्होने अपनी विद्या, बुद्धि और कवि-प्रतिभाका कभी अहंकार नहीं किया। उनकी कृतियोसे प्रकट है कि वे उच्च कोटिके विद्वान् और अच्छे कवि थे। किन्तु उन्होंने सदैव यह ही कहा, 'मै व्याकरण, छन्द और अलंकार आदि कुछ भी नही जानता। मेरी बुद्धि तुच्छ है, और मुझे भले-बुरेका भी ज्ञान नहीं है। जिनेन्द्रकी दुहाई देकर कहता हूँ कि मुझे तो केवल भगवान् १. कविता मनोहर खण्डेलवाल सोनी जाति, मूल संघी मूल जाको सांगानेर वास है । कर्म के उदय ते धामपुर में वसत भयौ, सबसो मिलाप पुनि सज्जन को दास है ॥ हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास, पृष्ठ ६७। २. धर्मपरीक्षा, प्रशस्ति, प्रशस्ति मंग्रह, जयपुर, पृष्ठ २२५ । ३. वही, पृ० २२५ । ४. वाराणसी सेठ प्रतिसागर पृथ्वी प्रसिद्ध कोटिक को धनी ताकै पाप उदै आयो थो। सदन सौ निसि अजोध्या को गमन कीनी अजोध्या के सेठ उह उद्धिम करावें थो॥ आनी बराबरि को करि नाना भांति सेती देकर बड़ाई निज थान को पठायो यो। जैसे हम आसू साह राखै निज बांह देके कहै 'मनोहर' हम पुनि जोग्य पायौ थो॥ वही, पृष्ठ २२५-२६ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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