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________________ हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि कवि बुलाकीदासके 'पाण्डव पुराण' वि० स० १७५४ से स्पष्ट है कि बुलाकोदासको माना 'जैनुलदे' अथवा 'जैनो', पाण्डे हेमराजकी पुत्री थी। उन्हीके अनुसार पाण्डे हेमराजका गोत्र गर्ग और जाति अग्रवाल थी।' सितपट चौरासी बोल यह अभीतक अप्रकाशित है। इसकी एक हस्तलिखित प्रति जयपुरके पं० लूणकरजीके मन्दिरमे विराजमान गुटका नं० १५७में निबद्ध है। इस गुटकेका लेखनकाल वि० स० १७८४ है। इसको एक अन्य प्रति इसी मन्दिरके वेष्टन नं. ४४१ मे पृयक्से बंधी रखी है। इस प्रतिका लेखन काल पौष सुदी ५ वि० सं० १७२३ दिया है। ___'सितपट चौरासी बोल' से विदित है कि उसको कविता उत्कृष्ट कोटिकी थी। एक पद्य देखिए, "सुनयपोष हतदोष, मोषमुख सिवपददायक, गुनमनिकोष सुघोष, रोषहर तोषविधायक । एक अनन्त सरूप सन्तवन्दित अमिनन्दित, निज सुमाव पर भाव भावि मासेह अमंदिन अविदितचरित्र विलसित अमित, सर्व मिलित अविलिप्त तन, अविचलित कलित निजरस ललित, जय जिन दलित सु कलिल धन ॥" उपदेश दोहा शतक ___ 'उपदेश दोहा शतक'की रचना वि० सं०१७२५ में कात्तिक सुदी पंचमीको हुई थी। इस कान्यकी हस्तलिखित प्रति दीवान बधीचन्दजीके मन्दिर जयपुरके गुटका नं० १७ और वेष्टन नं० ६३६में निबद्ध है । इसको भावधारा सन्तकवियोसे मिलती-जुलती है। वाह्य संसारमे ईश्वरको ढूंढ़नेवाले जीवको फटकारते हुए कविने एक स्थानपर लिखा है कि अरे ओ जीव ! तू अन्धेकी भांति उसको स्थान-स्थानपर क्यों खोजताफिरता है । वह निरंजन देव तो तेरे घटमें ही बसा है, वहां क्यों नहीं खोजता, १. हेमराज पण्डित बसे, तिसी मागरे ठाइ । मरग गोत गुन आगरी, सब पूजे जिस पाइ।। बुलाकीदास, पाण्डवपुराण भाषा, अन्तिम प्रशस्ति । २. अर्धकथानक, पृ० १०७।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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