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________________ २१२ हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि का जन्म हुआ। वह सम्राट् जहाँगीरका शासनकाल था। चारों ओर सुख-शान्ति विराजमान थी। जगजीवनका कुल अग्रवाल और गोत्र गर्ग कहलाता है। श्रेष्ठ शिक्षा और मांक प्रभावसे जगजीवन जिन-मार्गमे सुदृढ तो हुए ही, विद्वान् भी बन गये। चारो ओर उनकी यश-सुगन्धि विकोणित होने लगी। उन्होने स्वयं लिखा है, "समै जोग पाइ जगजीवन विख्यात भयौ, ज्ञानिनकी मण्डलोमे जिसको विकास है।" उस समय आगरेकी ज्ञानियोको मण्डलीमे जगजीवन प्रमुख व्यक्ति थे। दूसरी ओर के राजनीतिम भी दक्ष थे। जाफरखां नामके किसी प्रसिद्ध उमरावने उन्हे अपना मन्त्री नियुक्त किया था।' वे बनारसीदामके परमभक्त थे। उनकी बिखरी रचनाओको वनारसीविलासमे संकलित करनेका महत्त्वपूर्ण कार्य उन्होने ही किया था। इसके अतिरिक्त उन्होने बनारसीदासके 'नाटक समयसार'की टीका भी लिखी थी। इस भांति 'बनारसी-साहित्य' को अमर और लोक-प्रिय बनानेमे जगजीवनका बहुत बड़ा हाथ रहा है। उनकी मौलिक रचनाओंमे उनके अनेको पद लिये जा सकते है, जो सरस है तथा भाव-प्रवण भी। उन्होंने 'एकीभाव स्तोत्र' की भी रचना की थी। पद ___इनके रचे हुए पद जयपुर बधीचन्दजीके मन्दिरमे विराजमान गुटका नं० २९मे संकलित है । इस गुटकेका लेखनकाल सं० १८४१ है। इस गुटकेको प्रतिलिपि सांगानेरके सन्तोषराम अजमेराने की थी। एकीभाव स्तोत्र ___ इसको एक प्रति जयपुरके ठोलियोके दि० जैन मन्दिरके गुटका नं० १११में निबद्ध है । वादिराजके संस्कृत एकीभाव स्तोत्रको आधार मानकर इसका निर्माण हुआ है । रचनामे सरसता है। ताके परसिद्ध लघु मोहनदं संघइनि, जाके जिन-मार्ग विराजत धवल-सा। ताही को सुपूत जगजीवन सुदिढ़ जैन, बनारसी बैन जाके हिय मे सबल सा ॥ बनारसी विलास, संग्रहकर्ता परिचय, पृ० २४१, जयपुर, १६५४ ई० । १. ताको पूत भयो जगमानी, जगजीवन जिनमारगमानी। जाफरखां के काज संभारे, भया दिवान उजागर सारे ॥५॥ पं० हीरानन्द, पंचास्तिकाय टीका। २. राजस्थानके जैन शास्त्र-भण्डारोंकी ग्रन्थ सूची, भाग ३, पृष्ठ १२० ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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