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________________ २१० हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि उसका ध्यान रस्सीपर ही रहता है। वैसे ही संसारके बीच यश-प्रशंसा सुनते हुए भी हमारा मन सदैव प्रभु मे ही तल्लीन रहना चाहिए । भक्ति-साहित्यमें 'लघुता-प्रदर्शन' भक्तका मुख्य गुण माना जाता है। आनन्दघनको लघुतामें हृदय रमा है और इसी कारण उसमे दूसरोको विभोर बना देनेकी शक्ति है । भक्त एक प्रेमिकाकी भांति अपने आराध्यके आनेको प्रतीक्षा करता है और बेचैन होकर पुकार उठता है, "मैं रात-दिन तुम्हारी प्रतीक्षा करता हूँ, पता नहीं तुम घर कब आओगे। तुम्हारे लिए मेरे समान लाखों है, किन्तु मेरे लिए तो तुम अकेले ही हो । जोहरी लालका मोल कर सकता है, किन्तु मेरा लाल तो अमूल्य है। जिसके समान कोई नही, भला उसका क्या मूल्य हो सकता है ? इम भावके दो पद्य देखिए, "निशदिन जोउँ तारी वाटडी, घरे आवो रे ढोला। मुज सरिखा तुज लाल है, मेरे तुहीं अमोला ॥ निश० ॥१॥ जव्हरी मोल करे लाल का, मेरा लाल अमोला। ज्या के पटन्तर को नहीं, उसका क्या मोला ॥ निश० ॥२॥" आनन्दधनका उदार भाव था । वे एक अखण्ड सत्यके पुजारी थे। उसको कोई राम, रहीम, महादेव और पारसनाथ कुछ भी कहे, आनन्दधनको इसमें कोई आपत्ति नहीं थी। उनका कथन था कि जिस प्रकार मिट्टी एक होकर भी पात्र-भेदसे अनेक नामो-द्वारा कही जाती है, उसी प्रकार एक अखण्ड-रूप आत्मामे विभिन्न कल्पनाओंके कारण अनेक नामोकी कल्पना कर ली जाती है। उन्होंने अपने इस कथनको राम, रहीम, कृष्ण, महादेव, ब्रह्म और पार्श्वनाथके नामोंकी व्युत्पत्तियोंसे सार्थक बनाया है। वह पद्य इस प्रकार है, "राम कहो, रहमान कहो कोऊ, कान कहो महादेव री। पारसनाथ कहो, कोई ब्रह्मा, सकल ब्रह्म स्वयमेव री ॥ भाजन भेद कहावत नाना, एक मृत्तिका रूपरी। तैसे खण्ड कल्पना रोपित, आप अखण्ड सरूप री ॥ राम०॥ निजपद स्मै राम सो कहिए, रहिम करे रहिमान री। कर्षे करम कान सो कहिए, महादेव निर्वाण री ॥ राम० ॥ परसे रूप पारस सो कहिए, ब्रह्म चिह्ने सो ब्रह्म रो। इहविधि साधो आप आनन्दघन, चेतनमय निष्कर्म री ॥ राम०॥" आत्माका अनुभव एक फूलकी तरहसे है, जिसमें से बास तो उठती है, किन्तु उसे नाक ग्रहण नहीं कर पाती। नाक स्थूल है और वह सुगन्धित दिव्य तथा
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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