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जैन मत कवि : जीवन और साहित्य
एक दूसरा गुटका और है, जो कुंअरपालके पढ़नेके लिए अन्य किसी लेखकने लिखा था। इसमे कुंअरपालकी लिखी हुई 'समकित बत्तीसी' नामकी रचना भी संकलित है।' इसमे ३३ पद्य है। ३१-३३ तकके पद्योमे कविका अपना परिचय है। अवशिष्ट पद्य 'क' से 'ह' तकके अक्षरोसे आरम्भ हुए है। इसका विषय 'आतम-रस' से सम्बन्धित है । इसका अन्तिम पद्य देखिए,
"हुओ उछाह सुजस भातम सुनि, उत्तम जिके परम रस मिन्ने। ज्यउं सुरही तिण चरहि दूध हुइ, ग्याता तेरह प्रन गुन गिन्ने । निजबुधि सार बिचारि अध्यातम, कवित बत्तीस मेंट कवि किन्न । कंवरपाल अमरेस तनूमव, अतिहित चिन पादर कर लिन्नै ॥''
५६. यशोविजयजी उपाध्याय (वि० सं० १६८०-१७४३) ___ 'सुजसवेलीभास' के आधारपर यशोविजयजीका जीवन-परिचय थोड़ाबहुत प्राप्त होता है । यदि यह कृति न होती, तो हम उनके विषयमें भी सिवा अनुमान रचनेके और कुछ न कर पाते। उन्होंने स्वयं अपने विपुल साहित्यमें कहींपर अपने विषयमें एक शब्द भी नहीं लिखा। यह भारतीय परम्पराके अनुरूप ही था। 'सुजसवेलीभास' के रचयिता मुनिवर कान्तिविजयजी उनके समकालीन थे। अतः कृतिकी प्रामाणिकता असन्दिग्ध ही मानी जानी चाहिए। ___ उपर्युक्त रचनामें यशोविजयजीके जन्म-स्थानके विषयमें कुछ नहीं लिखा है। अभीतक इस विषयपर मतभेद था, किन्तु अब महाराजा कर्ण देवके वि० सं० ११४० के ताम्रपत्रसे सिद्ध हो गया है कि उनका जन्म गुजरातके 'कनाडा गांवमें हुआ था । यह तत्कालीन गम्भूताक्षेत्रमे शामिल था। आज भी वह गांव 'रूपेणनदी'के किनारे बसा है । उसमें कनौडिया ब्राह्मण और पटेलोंकी आबादी है। किसी समय वहां वणिक् भी अच्छी संख्यामें रहते थे। मध्यकालमें यह गांव 'काणोदा'के नामसे प्रसिद्ध था।
यशोविजयजीके पिताका नाम नारायण और माताका सौभाग्यदेवी था। दोनों धर्मपरायण, दानशील और उदार वृत्तिके व्यक्ति थे। उनका प्रभाव १. यह गुटका भी श्री अगरचन्दजी नाहटाने, पं० नाथूराम प्रेमीके पास भेजा था,
उन्हींके पास है। २. अर्द्धकथानक, पृ० १०१। ३. महेसाणासे पाटण जानेवाली रेलवे लाइनपर दूसरा स्टेशन पीणोज है, इससे
चार मील पश्चिममें कनोडा गाँव है।