________________
१९८
हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि
___कुंअरपालका जन्म ओसवाल वंशके चौरडिया गोत्रमे हुआ था । गौड़ी दासके दो पुत्र थे - अमरसिंह और जसू । कुंअरपाल अमरसिंहके पुत्र थे।' जसूके पुत्रका नाम धरमदास या घरमसी था, जिनके साझेमें बनारसीदासने जवाहरातका व्यापार किया था। पं० नाथूरामजी प्रेमीने उनका जन्मस्थान जैसलमेर माना है । वि० सं० १७०४मे गजकुशलगणिने उनके पढ़ने के लिए संग्रहणी सूत्र, जैसलमेरमे ही लिखा था।
एक गुटका, वि० सं० १६८४-१६८५ मे स्वयं कुंअरपालके हाथका लिखा हुआ उपलब्ध है। इसमे 'आनन्दघनके पद', 'द्रव्यसंग्रह भाषा टीका', 'फुटकर सवैया', और 'चतुर्विशति स्थानानि' रचनाएं संग्रहीत है । उसमे कविकी स्वयंकी कृतियां भी है। उनके अन्तमे 'चेतन कंवर' उपनाम दिया गया है । एक पद्यमें कविने लिखा है कि जिन प्रतिमा', भगवान् जिनेन्द्रके समान ही होती है। उसके निमित्तको पाकर हृदयमे राग-द्वेष नहीं रहता। जिन-प्रतिमाका दर्शन जिसको अच्छा नहीं लगता, वह मिथ्यादृष्टि है। अनिमेष नेत्रोंसे जिन-प्रतिमाको देखनेसे सब कर्म कट जाते है।
"जिन प्रतिमा जिन सम लेखीयइ, ताको निमित्त पाय उर अंतर, राग दोष नहि देखीयइ ॥ सम्यग्दिष्टी होइ जीव जे, जिण मन ए मति रेखोयइ । यहु दरसन जाकू न सुहावइ, मिथ्यामत मेखीयइ ॥ चितवत चित चेतना चतुर नर, नयन मेष न मेखीयइ । उपशम कृया उपजी अनुपम, कर्म कटइ जे सेखीयइ ॥ बीतराग कारण जिण मावन, उवणा तिण ही पेखीयह। चेतन कंवर मये निज परिणति, पाप पुन दुइ लेखीयइ ॥",
१. खितमधि ओसवाल अति उत्तम, चोरोडिया बिरद बहु दोजह ।
गोडीदास अंस गरक्त्तन, अमरसीह तसु नंद कहीजइ ।।
वही, ३१वे पछकी प्रथम दो पंक्तियाँ। २. भर्द्धकथानक, पद्य ३५२-३५४, पृ० ३०-४० । ३. वही, परिशिष्ट, पृ० १०२। ४. यह गुटका, श्री अगरचन्दजी नाहटाने पं० नाथूरामजी प्रेमीके पास भेजा था, ___ और उन्हीं के पास रहा। ५. अर्द्धकथानक, परिशिष्ट, पृ० १०२ ।