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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य इसकी भाषाके विषय में स्वयं बनारसीदासजीने कहा है कि वह मध्यदेशकी बोलीमें लिखा जायेगा । मध्यदेशकी सीमाएँ बदलती रही है, किन्तु प्रत्येक परिवर्तनमे व्रजभाषा और खड़ी बोलीके प्रदेश शामिल रहे ही हैं । बनारसीदासजीकी भाषा ब्रज भाषा है, किन्तु उसमें यत्किचित् खड़ी बोलीका भी सम्मिश्रण है । डॉ० हीरालाल जैनने लिखा है, 'अर्द्धकथानक' मे उर्दू फ़ारसो के शब्द काफ़ी तादाद मे आये है, और अनेक मुहावरे तो आधुनिक खड़ी बोली के ही कहे जा सकते हैं । इसपर से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बनारसीदासजीने 'अर्द्धकथानक' की भाषा में, ब्रजभाषाको भूमिका लेकर, उसपर मुग़लकालमे बढ़ते हुए प्रभाववाली खड़ी बोलीकी पुट दी है, और इसे ही उन्होने मध्यदेशकी बोली कहा है। 'अर्द्धकथानक ' से स्पष्ट है कि बनारसीदासके जीवन में सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे अच्छाई और बुराईका विश्लेषण करते हुए अपने जीवनको अच्छाईकी ओर ही बढ़ाते गये । वे किसी एक रीति रिवाज या परम्परासे चिपके न रह सके । एक समय था जब आशिक़ीको ही उन्होंने अपना धर्म समझ रखा था । परिवर्तन हुआ और वे जैन भक्त बन गये । 1 "कहैं दोष कोड न तजै, तजै अवस्था पाइ । जैसे बालक की दसा, तरुन भए मिटि जाइ ॥ उदै होत सुम करम के, मई असुभ की हानि । तार्तें तुरत बनारसी, गही धरम को बानि ॥ " नित उठित प्रात जाइ जिन मौन | दरसन बिनु न करै दंतौन । चौदह नेम विरति उच्चरे । सामायिक पडिकौना करे || १९१ हरी जाति राखी परवां न । जाव जोव बैंगन पचखान । पूजा विधि साधै दिन आठ । पढ़े बीनती पद मुख-पाठ //t बनारसीदासकी यह जैन-भक्ति नित्य प्रति बढ़ती हो गयी । जब खैराबादसे ब्याह करके लाये, तो मां और भार्याके साथ तीर्थयात्राको गये । अहिच्छत्रकी पूजा करने के उपरान्त वे हस्तिनापुर पहुँचे, वहाँ शान्ति- कुन्थु और अरहनाथकी भक्ति में एक कवित्त बनाया, जिसका वे नित्य प्रति पाठ करते थे। उस कवित्तको देखिए, १. मध्यदेस की बोली बोलि । गर्भित बात कहीं हिम खोलि || अर्द्धकथानक, पद्य ७, पृ० २ । २. कर्द्धकथा, प्रयाग, भूमिका, पृष्ठ १४-१५ । ३. डॉ० हीरालाल जैन, 'अर्द्धकथानककी भाषा', अर्द्धकथानक, पृष्ठ १६ । ४. अर्द्धकथानक, पद्य २७२-२७५, पृष्ठ ३१ । ५. वही, पद्म ५८०-५८२, पृष्ठ ६४-६५ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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