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जैम भक्त कवि : जीवन और साहित्य
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बनारसीदासने आत्माको चिदानन्दके नामसे भी अभिहित किया है । चिदानन्दकी स्तुति करते हुए उन्होंने लिखा,
"शोभित निज अनुभूति जुन चिदानन्द भगवान ।
सार पदारथ आतमा, सकल पदारथ जान ॥" बनारसीदासजीने सगुण ईश्वरकी भक्तिमे भी अनेकानेक पद्योंका निर्माण किया है। भगवान् पार्श्वनाथकी स्तुति करते हुए उन्होंने कहा कि भगवान्का स्मरण करने-मात्रसे ही भक्तोके सब भय दूर हो जाते हैं। "मदन-कइन-जित परम धरम-हित, सुमिरत भगति भगति सब डरसी। सजल-जलद-तन मुकुट सपत-फन, कमठ-दलन जिन नमत बनरसी।
भगवान् जिनेन्द्र पापरूपी धूलको दबानेके लिए बादलके समान है। वे भक्तके भयको दूर करते है, उसे कभी नरकमे नही जाने देते और उसे भवसमुद्रसे पार कर देते है। वे भगवान् कामदेवके वनकी अग्निको जलानेके लिए स्द्राग्निके समान है,
“पर-अघ-रजहर जलद, सकल जन-नत भव-भय-हर ।। जमदलन नरक-पदन्छयकरन, अगम अतट भव जल तरन ।
वर-सकल-मदन-वन हरदहन, जय जय परम अभय करन।" ___ जिन-बिम्ब भी जिनेन्द्र-जैसा ही है। उसका यश जपनेसे हृदयमे प्रकाश उत्पन्न होता है । मलिन बुद्धि पवित्र हो जाती है ।
"जा को जस जपत प्रकास जगै हिरदै मैं,
सोइ सुद्धमति होइ हुती जु मलिन-सी। कहत बनारसी सुमहिमा प्रगट जाकी,
___ सोहै जिन की छवि सुविद्यमान जिन-सी।" बनारसीने साधुकी भक्ति करते हुए कहा है कि साधु, धर्मका मण्डन और भ्रमोंका उन्मूलन करता है। वह परम शान्त होकर कर्मोंसे लड़ता है, और जीतकर संसारमे विराजता है।।
"धरम को मंडन मरम को विहंडन है,
परम नरम है के करम सों लर्यो है। ऐसो मुनिराज भुवलोक में विराजमान,
निरखि बनारसी नमसकार कर्यो है।" जिनवाणी भगवान्के हृदयरूप तालाबसे निकलकर शास्त्ररूप समुद्रमें