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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य मेघकुमार गीत इस छोटे-से गीति-काव्यमे ऋषि मेघकुमारकी स्तुति की गयी है । इसमें कुल ४६ पद्य हैं। इसकी प्रति जयपुरके ठोलियोके दिगम्बर जैन मन्दिरमें वेष्टन सं० ४४० मै निबद्ध है। उसमें केवल दो पन्ने है। इसका अन्तिम भाग इस प्रकार है, "श्री वीर जिणंद पसाइ, जे मेघकुमार रिषि गाइ। ताही अगली वीनस वीजाइ, वसी संपति सगली पाइ ॥ जे मुनीवर मेघकुमार, जीणी चारित पालउसार । गुणरू श्री माणीक सीस, इम कनक मणय नीस दीस ॥" जिनराज-स्तुति इसकी प्रति जयपुरके बधीचन्दजीके दि० जैन मन्दिर में गुटका नं० १२५ में लिखी है। इसकी लिपि सांगानेर में सं० १७५९ फाल्गुन सुदी ६ को हुई थी। भाषामें गुजरातीका पर्याप्त सम्मिश्रण है । विनती ___ इसकी प्रति भी जयपुरके बधीचन्दजीके दि० जैन मन्दिरके गुटका नं० ५१ वेष्टन नं० १०१७ और गुटका नं० १०८ और वेष्टन नं० १११८ में निबद्ध है। यह 'वंदू श्री जिनदाईसे प्रारम्भ होती है। यह भगवान् जिनेन्द्रकी भक्तिसे सम्बन्धित एक गीत है। श्रीपाल-स्तुति इसकी प्रति भी उपर्युक्त मन्दिरके ही गुटका नं० १०१ में निबद्ध है। इसमें श्रीपालकी स्तुति है, जैसा कि इसके शीर्षकसे विदित है। श्रीपाल, भगवान् जिनेन्द्रका परम भक्त था। यह भक्तकी भक्ति है । पद ___ कनककोत्तिके पद दि० जैन मन्दिर बड़ोतके पद-संग्रहमें संकलित हैं । कतिपय पद जयपुरके ठोलियोके जैन मन्दिर में विराजमान गुटका नं० १११ में भी निबद्ध हैं। जयपुरके छावड़ोंके मन्दिरके गुटका नं० ३४ और बधीचन्दजीके मन्दिरके वेष्टन नं. १०२३ में भी उनके पदोंका संकलन है। एक पदमें उन्होंने लिखा है कि भगवान्का नाम लेनेसे निश्चय ही शिवपद मिलता है, "नर नारी जो गावै रे भाई निहश्चै शिवपुर जावही।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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