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________________ हिन्दी जैन मक्ति-काव्य और कवि चतुर्गति वेलि यह प्रति भी जयपुरके बधीचन्दजीके दिगम्बर जैन मन्दिरमे विराजमान गुटका नं० ४३ और १४८ मे निबद्ध है। पहलेका लेखनकाल वि० सं० १७८२ और दूसरेका सं० १७९९ ज्येष्ठ वदी ११ है। जयपुरके ही पण्डित लूणकरनीके मन्दिरमे गुटका नं० २ और १८ मे भी इसकी प्रति संकलित है। कम-हिण्डोलना ____ इसकी प्रति जयपुरके बधीचन्दजीके मन्दिरमै गुटका नं० १६२ मे लिखी है। इसमे १८१ पद्य है । जयपुरके ठोलियोके जैन मन्दिरमे भी गुटका नं० २६ में इसकी एक प्रति संकलित है। अन्य रचनाएँ ____ 'छहलेश्याकवित्त' और 'भजन व पद-संग्रह' जयपुरके पं० लूणकरजीके मन्दिरमे गुटका नं० १८ मे निबद्ध है। ५२. कनककीर्ति ( १७वीं शताब्दी विक्रम उत्तराई ) कनककीर्ति खरतरगच्छोयशाखाके प्रसिद्ध जिनचन्द्रसूरिकी शिष्य-परम्परामे नयनकमलके शिष्य जयमन्दिरके शिष्य थे। इनकी समूची काव्य रचनाएं गुजराती और हिन्दीमे लिखी हुई हैं। बहुत पहले ही श्री मोहनलाल दुलीचन्द देसाई इनके द्वारा गुजरातीमे रची गयी 'नेमिनाथ रास' और 'द्रौपदी रास'-जैसी रचनाओंका विशद उल्लेख कर चुके है। दोनों ही रचनाएँ १७वी शताब्दीके अन्तिम पादकी कृतियां हैं। इनका निर्माण क्रमशः बीकानेर और जैसलमेरमें हुआ, अतः यह अनुमान किया जा सकता है कि ये उसी तरफ़के रहनेवाले थे। इन्होंने 'तत्त्वार्थ श्रुत सागरी टीका' पर एक विस्तृत हिन्दी टीका लिखी है जो गद्यमें है। __ इनकी हिन्दी कृतियोमे गीत अधिक है। सभी भगवान् या किसी ऋषिमुनिकी स्तुतिमें लिखे गये हैं । कान्यकी दृष्टिसे भी उनकी रचना प्रौढ़ है । भाषा ढुंढारी हिन्दी है, जिसमें 'है' के स्थानपर 'छै' का प्रयोग किया गया है। उन कृतियोंका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकारसे है : १. जैनगुर्जरकविमो, भाग १, बम्बई, १९२६ ई०, पृष्ठ ५६८-७२ । २. इसकी प्रति जयपुरके ठोलियोंके जैन मन्दिरमें, वेष्टन नं०४७ में मौजूद है। इसका लेखनकाल सं०१७४४ कार्तिक वदी है।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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