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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य पंचगति वेल
इसको रचना वि० सं० १६८३ मे हुई थी। इसको एक हस्तलिखित प्रति पंचायती मन्दिर दिल्ली में मौजूद है। दूसरी प्रति जयपुरके ठोलियोके दि० जैन मन्दिरके गुटका नं० १३१ मे मंकलित है। तीसरी प्रति जयपुरके वधीचन्दजीके दि० जैन मन्दिरमै गुटका नं० ५१ में निबद्ध है। इसमे कृतिका रचना-काल वि० सं० १६८३ दिया है । यह गुटका वि० सं० १७५४ का लिम्बा हुआ है। ___ इस काव्यमे पांच इन्द्रियोसे सम्बन्धित विषयोका वर्णन हुआ है । उन विषयोमे फंसनेसे जीव निगोदमे जाता है। जीवका कर्तव्य है कि इन्द्रियोका दास न बने, और भगवान्मे ध्यान लगाये । नेमिनाथ राजुल गीत
_ इसकी प्रति जयपुरके बधीचन्दजीके दिगम्बर जैन मन्दिरमे स्थित गुटका नं० १६२ में निबद्ध है। इसमे कुल ६८ पद्य है। सभीम भगवान् नेमिनाथ और राजुलको लेकर भक्ति दिखायी गयी है। मोरडा
इसकी प्रति जयपुरके बधीचन्दजीके दि० जैन मन्दिरके गुटका नं० ११८ में निबद्ध है । इसमें भी नेमिनाथ और राजुलको लेकर विविध भावोका प्रदर्शन हुआ है, सभी भगवद्विषयक रतिसे सम्बन्धित है । आदि और अन्त देखिए। प्रारम्भ-राग सोरठी ___ "म्हारो रे मन मोडा तू तो गिरनारया उठि भायरे ।
नेमिजी स्यों युं कहिज्यो राजमती दुक्ख ये सौसे ॥ म्हारौ० ॥ अन्तिम
"मोक्ष गया जिण राजइ प्रभु गढ गिरनारि मझार है।
राजल तो सुरपति हुवौ स्वामी हर्षकीर्ति सुकारो रे । म्हारो० ॥" नेमीश्वर गीत __ इसकी प्रति बधीचन्दजीके दि. जैन मन्दिरमें गुटका नं० १६२ में निबद्ध है। इसमें कुल ६९ पद्य है। यह भगवान् नेमीश्वरकी भक्तिमे रचा गया एक गीति-काव्य है। बीस तीर्थकर जखड़ी
इसकी प्रति जयपुरके ठोलियोंके जैन मन्दिरमें विराजमान एक पाठ-संग्रहमें संकलित है।