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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य कुमार गन्धोदककी सुहावनी वृष्टि करते हैं। देव भगवान्के पैरोके नीचे कमलोंकी रचना करते है। "अनुसरे परमानंद सब को, नारि नर जे सेवता । जोजन प्रमान धरा सुमार्जहि जहां मारुन देवता ॥ पुनि करहि मेघकुमार गंधोदक सुवृष्टि सुहावनी। पद कमलतर सुर खिपहिं कमल सु धरणि ससि सोभा बनी ॥१९॥" लघुमंगल पाण्डे रूपचन्दकी लिखी हुई यह कृति दि. जैन मन्दिर, बडौतके गुटका नं० ५५ वेष्टन नं० १७२ पृ० ४५-४७ पर अंकित है। इसमे केवल पांच पद्य है, प्रत्येक पद्यमे छह पंक्तियां है। कविने प्रथम पद्यमे ही अपनी लघुना प्रदर्शित करते हुए लिखा है कि हे प्रभु ! तुम्हारी अतुल महिमाका ठीक-ठीक विवेचन तो गणराज भी नहीं कर सकते, मै तो शक्ति-हीन हूँ, किन्तु तुम्हारी कृपासे मुखरित होकर कुछ कहता हूँ, "जै जै जिन देवन के देवा, सुर नर सकल करे तुम सेवा, अद्भुत है प्रभु महिमा तेरी, वरनी न जाय अलप मति मेरी । मेरी अलप मति वरनि न जाय अतुल महिमा तुम तणिं, गनराज वचननि सो अगोचर पूज्य पद उदोतणी। मैं सकति रहित जिनेसराय दंपति दिपति लाज न जिय धरौ। तुम सकति बसि वाचाल है प्रभु किमपि जस कीर्तन करौ ॥" नेमिनाथ रासा 'नेमिनाथ रासा' की प्रति आमेरके भट्टारक महेन्द्रकीतिके ग्रन्थ-भण्डारके एक गुटकेमे निबद्ध है, जिसे पं० परमानन्दजीने सं० १९४४ मे देखा था। 'नेमिनाथ रासा' एक सुन्दर कृति है। उसका आदि और अन्त भाग निम्न प्रकारसे है, आदि "पणविवि पंच परमगुरु मण-वच-काय ति-सुद्धि । नेमिनाथ गुण गावउ उपजे निर्मल बुद्धि । सोरठ देश सुहावनी पुहमीपुर परसिद्ध। रस-गोरस परिपूरनु धन-जन-कनक समिद्ध ॥" १. प्रशस्ति सग्रह, प्रथम भाग, दिल्ली, प्रस्तावना पृष्ठ ८१ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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