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________________ जैन भक्त कवि: जीवन और साहित्य १६५ 'ज्योतिषसार' और 'वैद्यविनोद' नामकी दो रचनाएं भी हैं। अवशिष्ट २३ साहित्यिक कृतियां है। वे आध्यात्मिकता और भक्तिसे पूर्ण है। उनकी भाषा सरस हिन्दी है। भगवतीदासने 'नवांककवली' और 'द्वात्रिशदिन्द्रकवली'को प्रतिलिपि भी की थी। रचनाओका परिचय निम्न प्रकार है, मुगति रमणी चूनड़ी इसकी रचना बूढ़िया गांवमे वि० सं० १६८०मे हुई थी। उस समय जहांगोरका राज्य था। इसमे ३५ पड़ है। यह एक रूपक-काव्य है। इसमें मुक्ति रमणीको चूनड़ी बनाया है। यह चूनड़ो ज्ञानरूपी सलिलमे भिगोकर सम्यक्त्व रूपी रंगमे रंगी जाती है। चूनड़ी स्त्रियोंके ओढ़नका उत्तरीय रंगीन वस्त्र है। लघु सीतासतु ___कविने पहले वि० सं० १६८४ मे 'बृहत्सीतासतु'का निर्माण किया था, किन्तु रचना बड़ी हो गयी थी और उसमे आकर्षण भी नहीं रहा था, अतः उन्होने उसे वि० सं० १६८७ चैत्र शुक्ला चतुर्थी चन्द्रवारको संक्षिप्त करके चौपईबद्ध कर दिया। अब यह उपलब्ध है। ___ 'लघुसीतासतु' मे रावणकी पत्नी मन्दोदरी और सीताका संवाद दिया है। मन्दोदरी सीताको रावणके साथ सम्भोग करनेके लिए प्रेरित करती है और सीता अपने सतीत्वपर दृढ़ रहती है। ये संवाद १२ महीनों में से प्रत्येकको लेकर लिखे गये है । आषाढ़ के संवादकी कतिपय पंक्तियां देखिए, मन्दोदरी : "तब बोलाइ मन्दोदरि रानी, रुति अषाढ़ धनघट बहरानी । पीय गए ते फिर घर आवा, पामर नर नित मंदिर छावा ॥ लवहिं पपीहे दादुर मोरा, हियरा उमग धरत नहिं मोरा । बादर उमहि रहे चौपासा, तिय पिय बिनु लिहिं उसन उसासा ॥ नन्हीं बूंद भरत झर लावा, पावस नम भागमु दरसावा । दामिनि दमकत निशि अंधियारी, विरहिनि काम-वान उरि मारी। भुगवहिं भोग सुनहिं सिख मोरी, जानव काहे मई मति मोरी। मदन रसाइन हुइ जग सारू, संजम-नेमु कथन विवहारू ॥ १. ज्योतिषसार और वैद्य विनोदकी प्रशस्तियाँ ‘भट्टारक सम्प्रदाय में लेखांक ६०१ और ६०२ पर निबद्ध हैं। २. वही, लेखांक ६०४ व ६०५। ३. पचायती मन्दिर देहलीको 'लघु सीतासतु' की हस्तलिखित प्रति ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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