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हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि
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धर्म सहेली
सुन्दरदासको यह कृति दीवान बन्धीचन्दजीके मन्दिर जयपुरके गुटका नं० ५१ में निबद्ध है । रचना सरस हैं। इसमें केवल ७ पद्य है ।
४९. पं० भगवतीदास ( वि० सं० १६८० )
पं० भगवतीदास अम्बाला जिलेके बूढिया नामक स्थानपर उत्पन्न हुए थे । उस समय बुढ़िया धन-धान्यादिसे सम्पन्न एक रियासत थी। अब तो वहाँ खण्डहर अधिक है।
भगवतीदासका कुल अग्रवाल और गोत्र वंसल था । उनके पिता किसनदासने वृद्धावस्थामे मुनिव्रत धारण कर लिया था । भगवतीदास बूढ़ियासे जोगिनीपुर ( देहली ) जाकर रहने लगे थे । देहलीमे मोतीबाजार के पार्श्वमन्दिर के पास हो पण्डितजीका निवास-स्थान था ।
कवि भगवतीदास के गुरुका नाम भट्टारक महेन्द्रसेन था, जो उस समय दिल्लीकी भट्टारकीय गद्दीपर प्रतिष्ठित थे । महेन्द्रसेन काष्ठासंघ माथुरगच्छीय भट्टारक गुणचन्द्र ( वि० सं० १५७६ ) के प्रशिष्य और सकलचन्दके शिष्य थे । भगवतीदासने अपनी प्रत्येक रचना में महेन्द्रसेनका उल्लेख किया है ।
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कवि भगवतीदासकी अधिकांश कृतियाँ सम्राट् जहाँगीर के शासनकाल ( सन् १६०५ - ६२ ) मे पूर्ण हुई । कतिपय अवशिष्ट रचनाएं शाहजहाँके राज्य ( सन् १६२८-५८ ) मे भी रची गयीं। कविबे जहाँगीरको प्रशंसा की है। रचनाओ - का निर्माण किसी एक स्थानपर न होकर देहली, आगरा, हिसार, कैथिया, संकिसा आदि अनेक स्थानोंपर हुआ । उनकी २५ कृतियाँ उपलब्ध हैं, जिनमे
१. प्रशस्ति, बृहत्सीतासतु, सलावा प्रति, अनेकान्त, वर्ष ११, पृष्ठ २०५, पादटिप्पण २ |
२. भट्टारक सम्प्रदाय, जोहरापुरकर, जीवराज ग्रन्थमाला, शोलापुर, १६५८, पृ० २४३, लेख संख्या (५६६-६०३ ) ।
३. बरे राज लवली जहांगीर का फिरिय जगति तिस आनि हो । शशि रस वसु विदा घर हो संवत मुनहु सुजान हो ॥
गुरु मुनि माहेन्द्रसेनजी पदपंकज नमुं तास हो ।
सहर सुहाया बूड़िये कहत भगौतीदास हो ||३५|
सुगति शिरोमणि चूनड़ी, देखिए वही, लेख संख्या, ५६६, पृष्ठ २३० ॥