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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य ४८. कवि सुन्दरदास (वि० सं० १६७५)
जैन कवि सुन्दरदास हिन्दीके सन्त सुन्दरदाससे पृथक् थे। जैन कवि सुन्दरदास बागड़ प्रान्तके रहनेवाले थे। दिल्लीके आस-पासका प्रदेश बागडके नामसे प्रसिद्ध था। कहा जाता है कि ये शाहजहां बादशाहके कृपापात्र कवियोंमें से थे । बादशाहने इनको पहले कविराय, फिर महाकविरायका पद प्रदान किया था। ये औरंगजेबके समय तक जीवित रहे।' सन्त सुन्दरदासका जन्म 'घौंसा' नामक स्थानपर हुआ था जो जयपुरसे १६ कोस पूर्वमे स्थित है। इनके पिताका नाम चोखा और माताका नाम सती था। इनकी रचनाओमे 'सुन्दर विलास' ही अधिक प्रसिद्ध है। वह अध्यात्मका प्रन्थ है। जैन कवि सुन्दरदास भी अध्यात्मवादी थे। दोनोकी भाषा, शैली और भावधारामे बहुत कुछ साम्य है, किन्तु दोनोंका अन्तर भी स्पष्ट है।
जैन कवि सुन्दरदासके चार अन्योंका अनुसन्धान हो चुका है : 'सुन्दर सतसई', 'सुन्दर विलास', 'सुन्दर शृंगार' और 'पाखण्ड पंचासिका'। काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका सम्पादकोने जब 'सुंदर भंगार' की खोज की, तो उसके प्रारम्भमें "श्री जिनाय नमः पुनः गणेशाय नमः, देवी पूजू सरस्वती हरेक पाय । नमस्कार कर जोर कै कहै महाकविराय ॥" लिखा हुआ प्राप्त किया । उसपर टिप्पणी लिखते हुए उन्होने कहा, "इसके प्रारम्भमे 'श्री जिनाय नमः' क्यों लिखा है, यह प्रश्न अपने सभी आश्चर्योंके साथ उपस्थित है। किन्तु हिन्दीके जैन कवि प्रायः अपनी रचनाओंके प्रारम्भमें भगवान् जिनेन्द्रके साथ-साथ गणेश और सरस्वतीको भी वन्दना करते रहे है। श्री अचलकीत्तिने तो अपने 'विषापहार स्तोत्र के प्रारम्भमें "विश्वनाथ विमल गुन ईस । विहरमान बंदौ जिन बीस ॥ ब्रह्मा विष्णु गनपति सुन्दरी । वर दीजो मोहि बागेसुरी" तक कहा है। कवि सुन्दरदासके पदोके मध्यमें स्थान-स्थानपर भगवान् जिनेन्द्र के गुणोंको महिमाका वर्णन है । इससे उनका जिन-भक्त होना सिद्ध ही है।
१. का० ना० प्र० पत्रिका, Annual Report Search for Hindi
Manuscripts-1901, No. 3. २. डॉ० मोतीलाल मेनारिया, राजस्थानी भाषा और साहित्य, हिन्दी साहित्य
सम्मेलन, प्रयाग, वि० सं० २००८, पृ० २६३ । ३.का. ना० प्र० पत्रिका, Annual Report search for Hindi
Manuscripts-1901, No. 3. ४. देखिए वही। ५. का० ना० प्र० पत्रिकाका १५वाँ त्रैवार्षिक विवम्ण, अचलकत्तिं जैनका विवरण ।
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