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________________ १६० हिन्दी जैन मक्ति-काव्य और कवि भक्तोंकी कमी नहीं थी। अनेक धर्मवन्तोंने असंख्य रुपया व्यय करके जिनमन्दिरोका निर्माण करवाया था। उनमे जिनमूत्तियोकी प्रतिष्ठा भी हुई थी। जैन पुराणोंकी प्रतिलिपियाँ हो रही थीं। जैन कवि भक्तिसे युक्त कविता रचनेमे प्रवृत्त थे, "होहि प्रतिष्टा जिणवरतनी, दीसहि धर्मवंत बहुधनी । एक करावहि जिणवरधाम, लागे जहां असंषिन दाम ।। एक लिखा के परम पुरान, एक करहि संतीक प्रधान । राज चैन कोऊ सकति न लुपैं, कविता कवित्त तपी तप त।"' सुदर्शनचरित्र _ 'सुदर्शनचरित्र'की एक प्रति पंचायती मन्दिर दिल्लीमे मौजूद है। कवि नन्दलालने इस काव्यको वि० सं० १६६३ माघ शुक्ला पंचमी गुरुवारके दिन रचा था। काव्यमे सेठ सुदर्शनका चरित्र चित्रित किया गया है। वह एक भक्त सेठ था। इसलिए इस काव्यमे प्रारम्भसे अन्त तक भक्तिकी धारा ही प्रवाहित हो रही है। कथानकपर अपभ्रंशके 'सुदंसणचरिउ' का पूरा प्रभाव है। भाषा और भाव दोनों ही सुन्दर है। पूरा काव्य 'चौपाई छन्दमे लिखा गया है। आगरेके निवासी निःशंक होकर अपने-अपने धर्मका पालन करते थे, इस कथनको निरूपित करनेवाली एक चौपाई देखिए, "धन कन पूरन तुंग अवासु । वसहिं निसंक धर्म के दास ॥ छत्राधीश हमाऊं वंश, अकबर नंद वैरि विध्वंस ॥" गूढ़-विनोद 'गूढ-विनोद'की एक हस्तलिखित प्रति जयपुरके पण्डित लूणकरजीके मन्दिरमे रखे गुटका नं० ९ में निबद्ध है। इसमें अध्यात्म-सम्बन्धी पद और गीत हैं। १. यशोधरचरित्र, पद्य ६१४-६१५, नया मन्दिर दिल्लीकी हस्तलिखित प्रति । २. संवत सोरह से उपरंत, सठि जानहु वरिष महंत ।। माष उज्यारे पाष, गुरु वासर दिन पंचमी। बंधि चौपई भाष, नंद करी मति सारशी॥ सुदर्शनचरित्र, अन्तिम प्रशस्ति, पद्य ६-७, वही । ३. नैना नंदि आदि जो कही, ताहि विधि बांध्यो चौपही ।। सुदर्शनचरित्र, अन्तिम प्रशस्ति, पद्य १३, वही।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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