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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य १५९ कोई धार्मिक प्रतिवन्ध नहीं था । साहित्यकार भी स्वतन्त्र रूपसे लिख रहे थे। कवि नन्दलालकी तीन रचनाएं उपलब्ध है : 'यशोघरचरित्र', 'सुदर्शनचरित्र' और 'गूढ-विनोद ।' यशोधरचरित्र _ 'यशोधरचरित्र'की एक प्रति नया मन्दिर दिल्लोके सरस्वतीभण्डारमें प्राप्त है। यह वि० सं० १९७२ की लिखी हुई है। दूसरी हस्तलिखित प्रति वि० सं० १८३९ की लिखी हुई जयपुरके बधीचन्दजीके दि० जैन मन्दिरमे है। काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिकाकी बीसवीं त्रैवार्षिक रिपोर्टमे जिस 'यशोधरचरित्र'का उल्लेख है, उसका लेखनकाल नहीं दिया है। नन्दलालने इस काव्यका निर्माण वि० सं० १६७० श्रावण शुक्ला सप्तमीको किया था। ___ इस काव्यमें जैनधर्मके प्रगाढ़ भक्त महाराज यशोधरके जीवन-चरित्रका वर्णन है । अपभ्रंशके प्रसिद्ध कवि पुष्पदन्तसे लेकर नन्दलाल तक अनेक यशोधरचरित्रोंका निर्माण हो चुका था। अतः काव्यका कथानक तो पुराना ही है, किन्तु काव्यत्वको दृष्टिसे नयापन है। उसमें चौपाई छन्दका प्रयोग किया गया है। भाषामें प्रसादगुण है और गतिशीलता। काव्यके प्रारम्भमे सरस्वतीकी वन्दना है, "द्वै कर जोडि नऊ सरसती, बढ़े बुद्धि उपजै शुभ मती। जिन बानी मानी जिन आनि, तिनको वचन चढ्यौ परवान ॥ बिवुध विहंगम नव धन वारि, कवि कुल केलि सरोवर मार। भवसागर तू तारन भाव, कुनय कुरंग सिंघनी भाव ॥ वे नर सुन्दर ते नर वली, जिनकी पुहुमि कथा बहुचली। जिनको तें सारद वर दीयो, सुख सरिता सु अमल जल पीयो ॥" आगरेका वर्णन करते हुए कविने लिखा है कि वहां भगवान् जिनेन्द्रके १. जहाँगोर उपमा देऊ काहि, श्री सुलितान नूरंदो साहि । कोश देश मंत्री मति गूढ, छत्र चमर सिंघासन रूढ ।। धन कन पूरन तुंग अवासु, वसहिं निसक धर्म के दाम । सुदर्शनचरित्र, अन्तिम प्रशस्ति, पद्य ५०५, ५०३, वही। २. संवत् सोरशे अधिक सत्तरि शावन मास । सुकुल सोम दिन सत्तमी, कही कथा मृदु मास ॥ यशोधरचरित्र, अन्तिम प्रशस्ति, पद्य ६। ३. यशोधरचरित्र, श्रादि भाग, जयपुरके श्री बधीचन्दजी दि० जैन मन्दिरकी हस्तलिखित प्रति।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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