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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि ४७. नन्दलाल (वि० सं० १६७०) __ कवि नन्दलाल आगरेके पास 'गौसुना' के रहनेवाले थे। उनके पूर्वज बयानामे रहते थे। इनके पिता श्रवणदास गौसुनामे आकर रहने लगे थे। पं० नाथूरामजी प्रेमोने इनको वंश-परम्परा - अमरसी, प्रेमचन्द्र, श्रवणदास और नन्दलालके रूपमे स्वीकार की है। किन्तु नन्दलालके 'यशोधर' और 'सुदर्शन चरित्र' से स्पष्ट है कि उनके पिताका नाम 'भयरौं' अथवा 'भैरो' था। हो सकता है कि श्रवणदासका बचपनका नाम 'भयरो' हो । नन्दलालका वंश अग्रवाल और गोत्र गोयल था।
नन्दलालकी मांका नाम चन्दन था। वे धार्मिक प्रवृत्तिको महिला थी। नन्दलालका झुकाव भी धर्मकी ओर था। वे विद्वान् थे और कवि भी । उनको सुजनतापर रोझकर ही प्रसिद्ध पण्डित हेमराजने अपनी विदुषी पुत्री 'जैनी' का उनके साथ विवाह कर दिया था। उनसे बुलाकीदासका जन्म हुआ जिसने अपनी मांकी प्रशंसा करते हुए लिखा है, "सुगुन की खानि कीधौं सुकुत की वानि सुम, कीरति की दानि अपकीरति-कृपानि है। स्वारथ-विधानि पर स्वारथ की राजधानि, रमाहू की रानि कीधों जैनी जिनवानि है ॥" ___ नन्दलालके गुरुका नाम भट्टारक त्रिभुवनकीत्ति था। उनका यश चतुर्दिक्मे विस्तृत था। त्रिभुवनकोत्ति श्रुतके पारंगत विद्वान् थे। उनके भी गुरु मुनिराय सुखेमकीत्ति इतने पवित्र विद्वान् थे कि उनका नाम लेने मात्रसे ही पाप पलायन कर जाते थे। सुखेमकीत्तिके गुरु भट्टारक जशीत्तिका तो बहुत अधिक नाम था। चारों ओर उनके संयमकी ख्याति थी। उन्होने कामदेवको वशमे कर लिया था। नन्दलालको ऐसी विद्वान् और पाचन परम्परा गुरुके रूपमे मिली थी और तदनुरूप ही वे स्वयं भी बने।
कविने अपने समयके आगरेको प्रशंसामे बहुत कुछ लिखा है। उस समय वहाँ अकबरके पुत्र जहाँगीरका राज्य था। उसके शासनमे सब प्रजा सुखी थी।
१. पं० नाथूराम प्रेमी, हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास, पृष्ठ ६५ । २. अगरवाल वरवंश गोसुना गाँव को, गोइल गोत प्रसिद्ध चिन्ह ता ठांव को। माताहि चन्दन नाम पिता भयरोभन्यो, नन्द कहीमनमोद गनी गन नागन्यौ। काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका, हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोजका २० वाँ त्रैवार्षिक विवरण, नन्द वा नन्दलालका विवरण । ३.बुलाकीदास, पाण्डवपुराण, प्रशस्ति । ४. सुदर्शनचरित्र, प्रशस्ति, पद्य ११-१३, का० ना० प्र० प०, २०वा त्रैवार्षिक
विवरण।