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जैन मक्त कवि : जीवन और साहित्य
६५५ चन्दजी नाहटाको मिला है। यह खरतरगच्छके मुनि तेजसारके शिष्य वीरविजयका लिखा हुआ है। इसका नाम है 'वीर विजय सम्मेतशिखर चैत्य परिपाटो'। इसके अनुसार एक खरतरगच्छीय संघ आगरेसे चला था। शाह हीरानन्दका संघ जो इलाहाबादसे चला था, बनारसमे इस संघसे आकर मिल गया था। शाह हीरानन्दके साथ हाथी, घोड़े, रथ, पैदल और तुपकदार भी थे। वहाँसे चन्द्रपुरी और पावापुरी आदि अनेक तीर्थोकी वन्दना करता हुआ तथा बड़े-बड़े विघ्नोको पार करता हुआ संघ शिखरजी पहुंचा। वहाँ २० टुंक और बहुत-सी मूर्तियोंकी वन्दना की। लौटते समय संघ राजगृहीके पांच पर्वतों तथा बड़गांवमें गौतम गणधरके स्तूप और अनेकानेक जैन मन्दिरोकी पूजा करता हुआ पटना आया । वहां संघ १५ दिन ठहरा और शाह हीरानन्दकी ओरसे सबको पहिरावणो दी गयी। जौनपुरसे संघके व्यक्ति अपने-अपने स्थानको चले गये। __इससे शाह हीरानन्दका जैन तीर्थोके प्रति भक्ति-भाव स्पष्ट है। यह बहुत कम लोगोको विदित होगा कि वे एक अच्छे कवि भी थे। उनको रची हुई 'अध्यात्म बावनी' एक सुन्दर काव्य है। अध्यात्म बावनी ____इसकी रचना वि० सं० १६६८ में आषाढ़ सुदी ५के दिन हुई थी। उसी वर्ष लाभपुरमे भोजिग किशनदास साह वेणीदासके पुत्रके पठनार्थ लिखी गयी इसकी एक प्रति उपलब्ध हुई है। इस काव्यमे ५२ अक्षरोंमे-से प्रत्येकको लेकर एकएक पद्यकी रचना की गयी है। सभी पद्य अध्यात्मसे ओतप्रोत है । सन्तकाव्यको भांति ही 'जड़ चेतन'को सम्बोधन करके अपने हृदयस्थ भावोंको स्पष्ट किया गया है। भाषामे प्रवाह है।
"ऊंकार सरुपुरुष ईह अलष अगोचर, अंतरज्ञान विचारि पार पावई नहि को नर । ध्यान मूल मनि जाणि आणि अंतरि हहरावउ, आतम तत्तु अनूप रूप तसु ततषिण पावउ । इम कहहि हीरानन्द संघपति अमल अटलहु ध्यान थिरि सुह सुरति सहित मनमई धरउ भुगति-मुगति दायक पवर ॥३॥"
१. श्री अगरचन्द नाहटा, शाह हीरानन्द तीर्थयात्रा विवरण और सम्मेतशिखर चैत्य __ परिपाटी, अनेकान्त, वर्ष १४, किरण १०, पृष्ठ ३००-३०१ । २. गुर्जरकविओ, प्रथम भाग, पृष्ठ ४६६-६७ ।