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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि ४४, उदयराज जतो (वि० सं० १६६७)
'मिश्रबन्धुविनोद' के रचयिताओंने इनके आश्रयदाताका नाम महाराजा रायसिंह लिखा है, जिन्होंने वि० सं० १६३० से १६८८ तक राज्य किया। किन्तु उदयराजकी लिखी हुई 'भजनछत्तीसी से स्पष्ट है कि इनके आश्रयदाता जोधपुरके राजा उदयसिंह थे। इसी आधारपर श्री अगरचन्दजी नाहटाने "मिश्रबन्धुविनोद' का निराकरण किया है।
उदयराज जोधपुरके पासके रहनेवाले थे। मिश्रबन्धुओंने उन्हे बीकानेरका रहनेवाला लिखा है। हो सकता है कि बीकानेर में उनका जन्म हुआ हो और जोधपुरमे आश्रय मिला हो।
_ 'भजनछत्तीमी मे अपना परिचय देते हुए कविने लिखा है कि यह ग्रन्थ मैने ३६ वर्षकी उम्रमे बनाया और उसका निर्माणकाल सं० १६६७ है । अत: यह निश्चित है कि उदयराजका जन्म सं० १६३१ मे हुआ होगा। इनके पिताका नाम भद्रसार, माताका नाम हरपा, भ्राताका नाम सूरचन्द्र, पत्नीका नाम पुरवणि, पुत्रका नाम सूदन और मित्रका नाम रत्नाकर था। ये खरतरगच्छीय भद्रसारके शिष्य थे । भद्रसारने 'चन्दनमलयगिरी चौपई की रचना की थी।
इनकी रचनाओंमे 'गुणबावनी', 'भजनछत्तीसी', 'चौबीस जिन सवैया' और
१.मिश्रबन्धुविनोद, प्रथम भाग, पृष्ठ ३६४ । २. राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोकी खोज, भाग २, परिशिष्ट १, पृ०
१४२-१४३ | ३. साम समये उदयसिंह वास समये योधपुर।
भजनछत्तीसी, पथ ३२। ४. मिश्रवन्धुविनोद, प्रथम भाग, पृ० ३६३ । ५. सोलहस सतस, कीध जन भजन छत्रोसी।
मोनू वरस छत्रीस, हुःव भनि आवइ ईसी। भजनछत्तीसी, ३७ वें पद्यकी प्रथम दो पंक्तियाँ। ६. समपि पिता भद्रमार जन्म समपे हरषा उर ।
समपि भ्रात सूरचन्द्र मित्र समपे रयणायर । समपि कलित्र पूरवणि समपि पुत्र सुदन दिवायर रूप अने अवतार ओ भो समपे आपज रहण उदैराज इह लधो रती, भवभव समपे मह महण ॥ मजनवचीसी, पच ३२॥