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________________ जैन मक्त कवि : जीवन और साहित्य १४७ __श्री ब्रह्मगुलालके गुरुका नाम भट्टारक जगभूषण था। वे अपने समयके प्रसिद्ध विद्वान और समर्थ गुरु थे। उन्हीसे ब्रह्मगलालने ज्ञान उपाजित किया था और उन्हीकी प्रेरणासे 'कृपण जगावनहार' का निर्माण किया। वह बादशाह जहाँगीरका समय था। उसका शासनकाल संवत् १६६२ से १६८४ तक माना जाता है। श्री ब्रह्मगुलाल भी इसी समय हुए हैं। उनकी 'बेपन-क्रिया' सं० १६६५ में और 'कृपण जगावनहार' सं० १६७१ में बना। उस समय टापूका राजा कीरतिसिंह था, जो तेग और त्याग दोनोमे ही समान रूपसे निपुण था। वह अपने भव्य गुणोके कारण कुलमे दीपकके समान माना जाता था। वह अपने मण्डलमै गो-रक्षाके लिए प्रसिद्ध था। भगवान्ने उसे अत्यधिक उदार बनाया था। उसीके राज्यमें धर्मदासजीके भतीजे मथुरामलजी रहते थे, जो अपने कुलके सिरमौर, और दान देनेमे सेठ सुदर्शनके समान थे। वे ब्रह्मगुलालजीके घनिष्ठ मित्र थे, यहाँतक कि ब्रह्मगुलालके मुनि बननेपर वे स्वयं भी क्षुल्लक हो गये थे, और ब्रह्मगुलालके साथ ही रहते थे। ___ ब्रह्मगुलाल सच्चे कलाकार थे। एक बार उन्होंने सिंहका वेष बनाया, तो कुछ ऐसा सच्चा सिंहका भाव आया कि उससे एक राजकुमारको हत्या हो गयी। राजकुमारके पिताको सम्बोधन करनेके लिए जब जैन मुनिका वेष धारण किया तो फिर सच्चे जैन मुनि हो गये। मुनि ब्रह्मगुलालकी छह रचनाएं उपलब्ध हुई है : 'बेपन-क्रिया', 'कृपण जगावन कथा', 'धर्मस्वरूप', 'समवशरणस्तोत्र', 'जलगालन क्रिया' और 'विवेक-चौपई'। इनमें 'विवेक-चौपई' जयपुरके ठोलियोंके मन्दिरमे है । १. जगभूषण भट्टारक पाइ, करौ ध्यान-अंतरगति आइ । ताको सेवगु ब्रह्म गुलाल, कीजी कथा कृपन उर-साल॥ कृपण जगावन कथा, अन्तिम प्रशस्ति, हस्तलिखित प्रति, श्री शान्तिनाथ दि० जैन मन्दिर, अलीगंज। २. सोरह से पेंसठि संमच्छर कातिग तीज अंधियारी हो । त्रेपन क्रिया, अन्तिम पाठ, प्रशस्तिसंग्रह, जयपुर, पृ० २२० । ३. सोरह से इकहत्तर जेठ, नुमोहि दिवस सुमरि परमेठि । कृपण जगावन कथा, अन्तिम प्रशस्ति, अलीगंजकी हस्तलिखित प्रति । ४. कृपण जगावन कथा, अन्तिम प्रशस्ति, अलीगंजवाली प्रति । ५. गये मनाने को मथुरामल, यती धर्म महिमा जानी। क्षुल्लक होकर साथ हो लिये, भोग वासना सब हानी ॥ कवि पुत्रपति, ब्रह्मगुलाल मुनिकी कथा। ६.ठोलियान मन्दिर, जयपुरका गुटका नं० १२५/
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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