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हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि
जैसलमेर चैत्य प्रवाडी'
इसकी रचना वि० सं० १६७९ मे हुई थी । इसमें ७ गीत है । जैसलमेर के चैत्योंको नमस्कार किया गया है । उसका आदि भाग देखिए,
"साधु साधवी श्रावक श्रावी, श्री संघनई परिवार रे भाई, श्री जिनराज सूरीसर हरषई, जैसलमेरु मझारि रे भाई | चैत्र प्रवाडि कर विधि सेती, वाजई वाजित्र सार रे, गावई गीत मधुर सर गोरी, खरतर गच्छ जयकार रे भाई || " अन्य रचनाएँ
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सहजकीर्तिने 'कलावती राम' वि० सं० १६६७, 'व्यसन सत्तरी' १६६८, 'देवराज वच्छराज चौपई' १६७२, 'सागर श्रेष्ठिकथा' १६७५, 'शीलरास' १६८६, और 'हरिश्चन्द्र चौपाई' १६९७ की भी रचना की थी ।
४३. ब्रह्मगुलाल (वि० सं० १६६२ )
श्री ब्रह्मगुलाल रपरी और चन्दवार गाँवोंके समीप 'टापू' नामक गाँवके रहनेवाले थे । यह आज भी आगरा जिलेमे यमुना नदीके किनारे बसा हुआ है । इसके तीन ओर नदी बहती है, अतः यह एक छोटा पूरा प्रायद्वीप ही है । इस भौगोलिक परिभाषासे अनभिज्ञ होनेके कारण ही उसका नाम टापू चल पड़ा होगा, और उस प्रचलित नामको ही कविने लिखा है । श्री कस्तूरचन्दजी काशलीवालने लिखा है कि ब्रह्मगुलालजी ग्वालियरके रहनेवाले थे । किन्तु सत्य तो यह है कि उन्होंने ' त्रेपन क्रिया' की रचना 'गढ़ गोपाचल' अर्थात् ग्वालियर में की थी, किन्तु वे वहाँके रहनेवाले नहीं 1
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१. जैनगुर्जर कविप्रो, भाग ३, पृ० १०२२ ।
२. मध्यदेश रपरी चंदवार, ता समीप टापू सुषसार ।
कृपण जगावनकथा, अन्तिम प्रशस्ति, हस्तलिखित प्रति, श्री शान्तिनाथ दि० जैन मन्दिर, अलीगंज ।
३. प्रशस्तिसंग्रह, जयपुर, अगस्त १६५०, प्रस्तावना, पृ० २१ ।
४. ब्रह्मगुलाल विचारि बनाई गढ़ गोपाचल थानं ।
छत्रपती चहुँ चक्र विराजे साहि सलेम मुगलाने । त्रेपन-क्रिया, अन्तिम पाठ, प्रशस्तिसंग्रह, जयपुर, १६५०, पृ० २२० ॥