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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
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सं० १८४५ कात्तिक शुक्ला ५ को लिखी हुई मौजूद है, जिसका उल्लेख श्री देमाई महोदयने किया है। सुदर्शन श्रेष्ठि राम ___ इसकी रचना वगडीपुरमे वि० सं० १६६१ मे हुई थी। इसमें सेठ सुदर्शनका जीवन-चरित्र वर्णित है। वह भगवान् जिनेन्द्रका परम-भक्त था। पूरा ग्रन्थ भक्तिसे हो ओतप्रोत है । प्रारम्भिक पंक्तियां इस प्रकार है,
"केवल कमलाकर सुर, कोमल वचन विलास, कवियण कमल दिवाकर, पणमिय फलविधि पास । सुरनर किंनर वर भमर, सुन चरणकंज जास, सरस वचन कर सरसती, नमीयइ सोहाग वास । जासु पसायइ कवि लहर, कविजनमई जसवास,
हंसगमणि सा भारती, देउ मुझ वचन विलास ।" जिनराजसूरि गीत ___ यह गीत ऐतिहासिक जैन काव्य-संग्रहमे प्रकाशित हो चुका है। इसमे १८ पद्य है । जिनराजसूरिकी महिमाका वर्णन करते हुए कविने लिखा है,
"राउल 'भीम' समा मली रे लाल, 'जैसलमेर' मझार । परवादी जीता जियइ रे लाल, पाम्यउ जय जयकार ॥४॥ क्रोध तज्यउ काया थकी रे लाल, दूरि कियउ अहंकार ।
मायानइ मानइ नहीं रे लाल, लोम न चित्त लिगार ॥८॥" गुरुमे इतने गुण है कि कवि उनका वर्णन नहीं कर पाता -
"जिण माहिं बहु गुण सूरिना, देखियइ प्रकट प्रमाण ।
वरणवी हुँ नवि सकू, तसु विद्या तणड गान ॥७॥ गुरुके दर्शनसे परम आनन्द मिलता है,
"सद्गुरु वंदियइ, 'श्री जिनराज सुरिन्द' । दरशन अधिक आणंद, जंगम सुरतरु कंद ॥२॥"
१. जैनगुर्जरकविओ, भाग १, पृ० ५२५-२६ । २. जैनगुर्जरकविओ, भाग ३, पृ० १०१६ । ३. ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह, पृ० १७४-१७६ ।