SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन मक्त कवि : जीवन और साहित्य से उनकी रचनाएँ सत्काव्यकी कोटिम आती है। उन्होने स्थान-स्थानपर रोचक ढंगसे अलंकारोंका प्रयोग किया है। संयम प्रवहण इसको 'राजचन्द्र प्रवहण' भी कहते हैं । इसमे राजचन्द्रमूरिके साधुजीवनको महत्ताका उल्लेख है। इसे हम साधु-भक्तिका ग्रन्थ कह सकते है । इसमें राम सरिक पर्वाचार्य सोमरत्नसरि. पासचन्द्रसरि और समरचन्द्र सरिके माता-पिता और आचार्य बनने आदिका भी वर्णन किया गया है। इसकी रचना वि० सं० १६६१ मे हुई थी। इसकी एक प्रति सं० १६८१ आपाढ सुदी १५ की लिखी हुई' जयपुरके ठोलियोके मन्दिरमें वेष्टन नं० ३३९ मे बंधी रखी है। उसका आरम्भ और अन्त इस प्रकार है, "रिसहु जिणिसर जगतिलउ नामि नरिंद मल्हार । प्रथम नरेसर प्रथम जिन त्रिभोवन जन साधार ॥३॥ चक्री पंचम जाणीइ सोलमउ जिनराय । शान्तिनाथ जगि शान्तिकर नर सुर प्रणमइ पाय ॥२॥" अन्तिम-राग-धन्यासी "गछपति दरिसणि अति आणंद । श्रीराजचंद सूरिसर प्रतपउ जा लगि हु रविचन्द ॥४९॥ संयम प्रवहण मालिमगायउ नयर खम्भावत माहि । संवत सोल अनह इकसठई आणी अति उछाह ।।गछ।। सरवण ऋषि गुरु साधु शिरोमणि, मुनि मेघराज तसु सीस । गुण गछपति ना भावइ भाषइ पहुचह आस जगीस ॥१५२॥" अन्य रचनाएँ ___ इनकी अन्य रचनाओं में 'नल-दमयन्ती रास', 'सोल सलीनो रास', 'पार्श्वचन्द्र स्तुति' तथा 'सद्गुरु-स्तुति' और है । इनमे 'पार्श्वचन्द्र-स्तुति' उन पार्श्वचन्द्रकी वन्दना है जिनके नामपर 'पार्श्वचन्द्रसूरिगच्छ' ही चल पड़ा था। 'सद्गुरुस्तुति' मे गुरुकी स्तुति की गयी है और वह एक सुन्दर गीति-काव्य है । १. जैनगुर्जरकविश्रो, भाग १, पृ० ४०१-४०२ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy