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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य १३९ दान दोजे जिनपूजा कीजे समकित मर्ने राखिजै जी। सुत्रज मणिए णवकार गणिए असत्य न विभाषिजे जी ॥१०॥ लोम तीजे ब्रह्म धरीजे सांमल्यानुं फल एह जी । ए गीत जे नर नारी सुणसे अनेक मंगल तरु गेह जी ।।११।।" भरत-बाहुबली छन्द ___ इसका उल्लेख श्री मोहनलाल दुलीचन्द देसाईने 'जनगुर्जरकविओ' भाग ३ पृ० ८०४-५ पर किया है । उसका एक पद्य इस प्रकार है, "बोलि वादीचंद्र गणनु कुण रत्नाकर, अवनि एक तुं मल अचल महिमा महिमाकर, तुं असलउ अरदेव जित भवतारण, आश्रीतना जे लोक तेहनुं नरक निवारण, ऋषभदेव वंछित मलो, बाहुबल जग जाणीइं, मगति पामी भाव सुं तुम गुण एक वखाणीइ ॥४८॥" आराधना गीत इसकी प्रति सादरापुरमें पार्श्वनाथ चैत्यालयके सरस्वतीभवनमे धर्मभूषणके शिष्य ब्रह्म वाघजीकी लिखी हुई मौजूद है। यह एक मुक्तक काव्य है, और उसमे कुल २८ पद्य है। प्रत्येक पद्य अर्हन्तकी भक्तिसे सम्बन्धित है। प्रथम पद्यमें ही सरस्वती और गणधरकी वन्दना करते हुए कविने कहा है कि जो कोई इस आराधनाको पढ़ेगा अथवा सुनेगा, उसके पापका तो लेश-मात्र भी न रह जायेगा। "श्री सरसती नमी वर पाय, गोरुपा गणधर राय । कहुं आराधना सुविशेस, सुर्णे पाप न रहे लवलेस ॥१॥" अम्बिका-कथा ___ इस कथाकी रचना वि० सं० १६५१ मे हुई थी। इसको एक हस्तलिखित प्रति लखनऊके श्री विजयसेन और यति रामपालजीके पास है। इसमें देवी अम्बिकाके प्रति भक्ति-भाव प्रदर्शित किया गया है। यह कथा प्रकाशित हो चुकी है। १. वही, पृ०८०५ २. अगरचन्द नाहटा, अम्बिकाकथा, अनेकान्त, वर्ष १३, किरण ३-४ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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