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________________ हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि 'सुलोचना चरित्र' की एक हस्तलिखित प्रति वि० सं० १६६१ की लिखी हुई मिली है । ग्रन्थरचना उससे कुछ पूर्व हुई होगी । १३८ उन्होंने गुजराती मिश्रित हिन्दीमे भी अनेक रचनाएँ की । उनमें महत्त्वपूर्ण ये है : 'श्रीपाल आख्यान', 'भरत बाहुबली छन्द', 'आराधना गीत', 'अम्बिका कथा' और 'पाण्डवपुराण' । श्रीपाल आख्यान इस आख्यानकी एक प्रति बम्बईके ऐलक पन्नालाल सरस्वतीभवनमें मौजूद है । श्री मोहनलाल दुलीचन्द देसाईने जिस प्रतिका उल्लेख किया है, वह वि० सं० १६७६ पौष बदी ३ की लिखी हुई है । आख्यानके विषयमे पण्डित नाथूरामजी प्रेमीने लिखा है कि यह एक गीतिकाव्य है और इसकी भाषा गुजराती मिश्रित हिन्दी है । इसकी रचना संघपति घनजी सवाके कहनेसे वि० सं० १६५१ मे हुई थी । इसमे आकर्षणकी कोई कमी नही है | नौ रसोंका प्रयोग हुआ है । भाषा में प्रवाह और सरलता है । काव्यमे अधिकतर दोहे और चौपाईका प्रयोग हुआ है। प्रारम्भिक मंगलाचरण देखिए, " आदि देव प्रथमं नमि, अंति श्री महावीर । वाग्वादिनि वदने नमि, गरुड गुण गंभीर ॥" “सरसति सुमति णये अणुंसरि, गौर गहना गोयम मनि भरि । बोलु एक हुँ सरस आख्यान, सुण जे सज्जन सहु सावधान ॥ ५,, इस काव्य के पढ़नेसे जिनेन्द्र के प्रति भक्तिपूर्ण भावोंका उदय होता है । चंचल चित्त स्थिर होकर भगवान्‌की भक्तिमे लग जाता है। दान देने, जिनपूजा करने और सम्यक्त्व धारण करने में मन लगता है । णत्रकार मन्त्रके उच्चारणमे, और ब्रह्मको धारण करनेमें हृदय आनन्दका अनुभव कर उठता है । इस गीतके गानेसे नर-नारियोको अनेक प्रकारके मंगल प्राप्त होते है, "भवियन थिर मन करीनें सुणज्यो नित सम्बन्ध जी ॥९॥ १. इसकी एक हस्तलिखित प्रति ईडरके शास्त्रभण्डारमें मौजूद है, और दूसरी ऐलक पन्नालाल दि० जैन सरस्वतीभवनमें है । २. जैनगुर्जरकविप्रो, तीजो भाग, पृ० ८०४ । ३. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३८७ । ४. संघपति धन जी सवा बचनें केवल श्रीपाल पुत्र सहित तुम्ह नित्य करो जयकार जी ॥ १२ ॥ ५. जैनगुर्जरकविप्रो, तीजो भाग, पृ० ८०३ । कीधो ए प्रबंध जी ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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