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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
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मिश्रण है । कहीं दीनो, लीनी, कही दियौ, लियो, अजहूँ और कहो कहाड़े, सुवासिणि, सीसाण और मणूं आदि शब्दोका प्रयोग है । मिश्रण होते हुए भी भाषाको 'सधुक्कड़ी' की संज्ञा नहीं दी जा सकती, क्योकि उसमे साहित्यिकता है ।
३९. वादिचन्द्र ( वि० सं० १६५१ )
ये मूलसंघके भट्टारक ज्ञानभूषण के प्रशिष्य और प्रभाचन्द्रके शिष्य थे । इनकी गद्दी गुजरातमे कहीं पर थी । इनकी गुरुपरम्परा विद्यानन्दि, मल्लिभूषण, लक्ष्मीचन्द्र, वीरचन्द्र, ज्ञानभूषण, प्रभाचन्द्रके रूपमें कही जाती है । वादिचन्द्र एक समर्थ साहित्यकार थे । उन्होंने संस्कृत और गुजराती मिश्रित हिन्दी में लिखा । इनका संस्कृतमे लिखा हुआ 'पार्श्वपुराण' १५०० श्लोकप्रमाण है। उसकी रचना वाल्हीक नगरमे कात्तिक सुदी ५ वि० सं० १६४० को हुई थी ।' 'ज्ञानसूर्योदय' नाटककी तो बहुत ही ख्याति है । उसका निर्माण माघ सुदी ८ वि० स० १६४८ को मधूकनगरमे हुआ । 'पवनदूत' तो कालिदासके मेघदूतके आधारपर रचा गया एक सरस खण्ड-काव्य है । इसमें कुल १०९ पद्य है ।' 'यशोधर चरित्र' अंकलेश्वर भँरोचके चिन्तामणि पार्श्वनाथके मन्दिर में, वि० सं० १६५७ में पूर्ण किया गया ।
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१. वादिचन्द्र, श्रीपाल आख्यान, प्रशस्ति, पद्य ५-८, जैन साहित्य और इतिहास, पृष्ठ ३८७, पादटिप्पणी २ ।
२. शून्याब्दो रसाब्जाके वर्षे पक्षे समुज्ज्वले |
कात्तिकमासि पंचम्यां वाल्हीके नगरे मुदा 11
पार्श्वपुराण, प्रशस्ति, ३ श्लोक, प्रशस्तिसंग्रह, भाग १, वीर सेवामन्दिर, दिल्ली, प्रस्तावना, पृ० २४, पाद टिप्पणी १ ।
३. वसु- वेद- रसाब्जाके वर्षे माघे सिताष्टमी दिवसे ।
श्रीमन्मधूकनगरे सिद्धोऽयं बोधसंरम्भः ॥
ज्ञानसूर्योदय नाटक, प्रशस्ति, ३ पद्य, जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३८५, पादटिप्पणी ४ | यह नाटक, जैन ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, बम्बईसे, सन् १६०६ में, पं० नाथूराम प्रेमी अनुवादसहित प्रकाशित हो चुका है।
४. इसे खण्डकाव्यको स्वर्गीय पं० उदयलालजी काशलीवालने सन् १९१४ में हिन्दी अनुवाद सहित जैन साहित्य प्रसारक कार्यालय, बम्बई द्वारा प्रकाशित किया था | अब यह निर्णयसागर प्रेसकी काव्यमालाके तेरहवें गुच्छकमें छपा है । ५. अंकलेश्वर सुग्रामे श्रीचिन्तामणिमन्दिरे । सप्तपंच रसाब्जांके वर्पेsकारि मुशास्त्रकम् ॥
यशोधरचरित्र, प्रशस्ति, ८१वॉ पद्य, प्रशस्तिसंग्रह, प्रथम भाग, दिल्ली, प्रस्तावना, पृ० २४, पादटिप्पणी ४ |
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