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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि को जयमाल', गुटका नं० १६० मे, 'मालीरासा', गुटका नं० १६२ में और 'पद', गुटका नं० ३२ मे सकलित है। इनके 'पद-संग्रह' का रचनाकाल वि० सं० १६७१ जेठ बदी १३ दिया हुआ है। जम्बूस्वामीचरित्र ___ 'जम्बूस्वामीचरित्र'की रचना वि० सं० १६४२ मे हुई। इसमें जम्बूस्वामी नामक एक जैन-भक्तका चरित्र है। इसकी वह प्रति, जिसका उल्लेख काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिकामे है, सं० १७५१ को लिखी हुई है। हिन्दीके प्रसिद्ध जैन कवि विनोदीलालने अपने पढ़नेके लिए लिखी थी । जम्बूस्वामी जैनोके अन्तिम केवली थे और उनकी भक्तिमे ऐसी अनेकानेक रचनाएं बनती चली आ रही है । हिन्दीमे लिखा हुआ यह प्रस्तुत चरित्र भाषा और भाव दोनो ही दृष्टियोसे उत्तम कोटिका है।
जब राजा श्रेणिक भगवान महावीरके समवशरणमें गया तो मानस्तम्भके समीपस्थ होते ही उसका मन कोमल हो गया,
"मानस्थ्यम्भ पास जब गयौ, गयो मान कोमल मन भयो । तीन प्रदच्छिना दीनी राइ, राजा हरष्यै अंगि न माइ ॥८॥ नमसकार करि पूज कराइ, पुणि मुनि कोठे बैठो आइ।
परमेसुर स्तुति राजा करै, बार-बार भगति उचरै ॥९॥" योगीरासा
योगि-भक्तिका काव्य है। इसका विवरण काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिकाकी १७वी त्रैवार्षिक खोज रिपोर्टमे पृष्ठ ८९ पर अंकित है। बीकानेरके अभय जैन पुस्तकालयमे 'जोगी रासो'को कई प्रतियां मौजूद है। योगीरासा'को एक प्रति आमेरशास्त्रभण्डार और एक प्रति महावीरजी शास्त्रभण्डारमे भी है। _ 'योगीरासा' के दो पद्य अत्यधिक सुन्दर है, उनमें दूसरा तो आध्यात्मिक ओजका प्रतीक है। कवि कहता है, "मै मोहके विशाल पर्वतको खोदकर बहा दूंगा। स्थूल इन्द्रियोंको जीवित नही छोडूंगा। कन्दर्परूपी विकराल सर्पके टुकड़ेटुकड़े कर दूंगा और विषम विषसे भरे हुए विषयोंको तो समाप्त ही कर दूंगा,
१. संवत तो सोला सै भए, बयालीस ता ऊपर गये ।
भादौं बदि पाँचै गुरुवार, वा दिन कथा कियौ उच्चार ॥९१॥ २. राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, भाग ४, पृष्ठ १२६-३० ।