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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
१२५ ३५. पाण्डे जिनदास ( वि० सं० १६४२ )
'जम्बू चरित्र' मे पाण्डे जिनदासने अपना परिचय दिया है। वे आगरेके रहनेवाले थे। उनके पिताका नाम ब्रह्मचारी सन्तीदास था। कुछ विद्वानोंका कथन है कि उन्होने ब्रह्म सन्तीदासके पास शिक्षा प्राप्त की थी। हो सकता है कि उन्होने शिक्षा भी अपने पिताके समीप ही ग्रहण की हो। एक ही व्यक्ति गुरु और पिता दोनों हो सकता है। यदि 'ब्रह्म' विशेषण शंका उत्पन्न करता हो तो यह भी असम्भव नही है कि श्री सन्तीदासने पुत्रोत्पत्तिके उपरान्त ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया हो।
इनका रचनाकाल बादशाह अकबरका समय माना जाता है। इन्होंने स्वयं भी ऐसा ही लिखा है। इनके आश्रयदाता अकबरके प्रसिद्ध मन्त्री टोडरशाह थे। उनके पुत्र दीपाशाहके पढ़नेके निमित्त ही 'जम्बूस्वामीचरित्र'को रचना हुई थी। टोडरशाहके परिवारके रिषभदास, मोहनदास, रूप मंगद और लछमीदासका उल्लेख भी उन्होंने किया है। वे सभी धार्मिक व्यक्ति थे और उनकी ख्याति भी विशेष थी। दीपाशाहने मथरामें एक 'निपिद्धिका'का निर्माण करवाया था। हो सकता है उन्होंने मथुराके प्राचीन जैन-स्तूपोका भी जीर्णोद्धार करवाया हो।
पाण्डे जिनदासके लिखे हुए अनेक काव्योंका पता चला है। वे इस प्रकार है : 'जम्बूस्वामीचरित्र', 'योगीरासा', 'जखड़ी', 'चेतनगीत', 'मुनीश्वरोंकी जयमाल', 'मालोरासा', और 'पद' । इनमे अन्तिम चार तो नवीनतम खोजके परिणाम हैं। 'चेतनगीत' श्री दि० जैन मन्दिर बधीचन्दजी, जयपुरके गुटका नं० २७ में, 'मुनीश्वरों
१. ब्रह्मचार भयो संतीदास, ताके सुत पाडे जिनदास ।
तित या कथा करी मनलाय, पुन्य हेत मित तत वर ताहि ॥९५॥ दि० जैन मन्दिर, बड़ौतके सरस्वती भण्डारकी प्रति । २. अकबर पातस्याह का राज. कीनी कथा धर्म के काज.
भूल्यौ बिसर्यो अक्षर जहां, पंडित गुणी सवारी तहा ॥९२।। ३. कोई धर्मनिधि पासा साह, टोडल सूत आगरे सनाह ।
ताके नावं कथा यह करी, मथुरा मे जिहि निसही करी ॥९३।। ऋषभदास अरु मोहनदास, रूप मंगद अरु लिष्येभीदास ।
धर्मबुद्धि तो रहीयो चित्त, राज करे परवार संजुत्त ।।९४॥ ४. काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिकाकी हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थोंकी खोजके वार्षिक
२०वे विवरणमें पाण्डे जिनदासका विवरण, नं०३।