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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि रचना वि० सं० १६७७ जेठ सुदी १५ बुधवारके दिन कर्णपुरी नामके नगरमें हुई थी।' इसकी एक प्रति वि० सं० १७५९ की लिखी हुई मौजूद है।' __ इस काव्यमे मूर्ति पूजाका समर्थन किया गया है। उस समय मुसलमान और हिन्दुओंके कुछ सम्प्रदाय मूत्ति-पूजाको कुमति मानने लगे थे। इसमे उसका निरास किया गया है। आराधना चौपई
इसको रचना वि० सं० १६१३ माह सुदी १३ गुरुवारको नाणोरमे हुई थी। इसकी एक प्रति बीकानेरके नाहटा श्रीके पास है, जिसमे केवल ४ पन्ने है। दूसरी प्रति आसोज बदी १३ वि० सं० १८६९ की लिखी हुई महर भण्डारमे मौजूद है। इसमें केवल ७ पन्ने है। एक तीसरी प्रति और भी है जो १७वीं या १८वों सदीकी लिखी हुई है, जिसमै ६ पन्ने है। इस काव्यमे २४ तीर्थकरोकी आराधना की गयी है। मुनिपति चरित्र चौपई ____ इस चौपईकी रचना वि० सं० १६१८ माह वदी ७ रविवारको बीकानेरमे हुई थी। इसकी प्रति वीरगामके संघ भण्डारमे मौजूद है। इसमे कुल ७३३ पद्य है। इसमे मुनिवर मुनिपतिके चरित्रकी महिमाका वर्णन है। पूरा काव्य 'मुनिभक्ति से ओतप्रोत है। सोलह स्वप्न सझाय
इस छोटे-से काव्यका निर्माण वि० सं० १६२२ भादों सुदी ५ को हुआ था। गर्भमें आनेके पूर्व तीर्थंकरकी माता १६ स्वप्न देखा करती है। उन्हींका यहाँ उल्लेख है । इसमे कुल २० पय है । अठारह नातरां सम्बन्धी सझाय ___ इसकी रचना वि० सं० १६१६ श्रावण शुक्लामें हुई थी। जम्बू स्वामीने जिन १८ नातराओका उल्लेख किया है, उन्हींका इसमें वर्णन है। इसमें कुल ५२ पद्य है।
१. सोलहसै सत्तोत्तरवास, कर्णपुरी नयरी-उल्हास ।
जेहि पुनिम ने बुधवारे, श्री संवेगि जोग-अवतार ॥ जैनगुर्जरकविभो, भाग १, पृष्ठ २४० ।