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हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि
ऐसा प्रतीत होता है, जैसे उन्हें कवित्व शक्ति जन्मसे ही मिली थी । उन्होंने भक्ति, शृंगार और वीर जैसे प्रमुख रसोपर सफल कविताएं कीं। उनकी शृंगारपरक रचनाका नाम 'माधवानल चौपाई' है । इसे 'माधवानल - कामकन्दला' भी कहते है । इसकी रचना भी श्रावक हरराजकी प्रेरणा से ही फागुन सुदी १३, रविवारके दिन सं० १६१६ मे हुई थी। इसमे साढ़े पांच सौ चौपाइयाँ है । इसमें माधवानल और कामकन्दलाके प्रेमको कथा है। कही लोकमर्यादाका उल्लंघन नहीं हो सका, यही इसकी विशेषता है । आज भी यह ग्रन्थ राजस्थान और गुजरातमे बहुत प्रसिद्ध है ।
कुशललाभने भक्तिसे प्लावित अनेकानेक काव्योंकी रचना की और उनमे कतिपय ये है : 'श्रीपूज्यवाहणगीतम्', 'स्थूलिभद्रछत्तीसी', 'तेजसार रास', ' स्तम्भन पार्श्वनाथस्तवनम्', 'गोडीपार्श्वनाथस्तवनम्' और 'नवकार छन्द' |
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श्रीपूज्यवाहणगीतम्
यह गीत, ऐतिहासिक जैन - काव्यसंग्रहमे संकलित है। काव्य सरस है, भाव सुन्दर और भाषा रम्य । कविने भक्तिपूर्ण भावोसे श्रीपूज्यवाहणके चरणोमे अपनी पुष्पांजलि अर्पित की है ।
गुरुके प्रवचनों के अर्थको वृक्षोंने समझा है, और उसीमे तन्मय होकर मानो वे झूम उठे है । कामिनी कोयलमधुर स्वरमे गुरु महाराजके ही गीत गा रही है। 'पूज्यती देशना' से प्रभावित होकर ही मानो गम्भीर गगन बारम्बार गाज रहा है । मयूरोकी थिरकन और चकोरोको पुलकपूर्ण आँखोमे गुरूपदेशका शुभ भाव स्पष्ट झलक रहा है,
"प्रवचन वचन विस्तार अरथ तरवर घणा रे । कोकिल कामिनी गीत गायइ श्री गुरु तणा रे 1
१. रावल मालि सुपाट धरि, कुंवर श्री हरिराज । विरचिएह सिणगारसि तास कुतूहल काज ॥ संवत् सोल सोलोतरइ, जैसलमेर मझारि ।
फागुण सुदि तेरसि दिवस, विरचि आदित्यवार ॥
गाथा साठी पांचसइ, ए चउपइ प्रमाण ।
माधवानल चौपई, अन्तिम प्रशस्ति, प्रशस्तिसंग्रह, जयपुर, पृष्ठ २४७-२४८ । २. ऐतिहासिक जैन-काव्यसंग्रह, अगरचन्द नाहटा द्वारा सम्पादित, कलकत्ता,
वि० सं० १६६४, पृष्ठ ११०-११७ ।
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